नवरात्र विशेष: माँ के चौथा स्वरूप कुष्मांडा की कथा मंदिर,मंत्र और भोग पूजा विधि जानिए।

नवरात्र विशेष: माँ के चौथा स्वरूप कुष्मांडा की कथा  मंदिर,मंत्र और भोग पूजा विधि जानिए।

माँ कुष्मांडा मंदिर कानपुर ज़िले के घाटमपुर में मां कुष्मांडा देवी का मंदिर का वीडियो :-https://youtu.be/7aHO-EN7kI4?si=mjesyWl189btcOjz

नवरात्र के चौथे दिन देवी मां को कुष्मांडा के रूप में पूजा जाता है। जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने अपने ईषत्‌ हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी। मां कुष्‍मांडा को पीला रंग सबसे प्रिय है। उनकी पूजा में पीले रंग के फल, फूल और मिठाई अर्पित करनी चाहिए। आइए आपको बताते हैं कि नवरात्रि के चौथे दिन की माँ कुष्मांडा की पावन कथा देवी कुष्‍मांडा की महिमा के बारे में देवी भागवत पुराण में विस्‍तार से बताया गया है मां दुर्गा के चौथे रूप ने अपनी मंद मुस्‍कान से ब्रह्मांड की उत्‍पत्ति की थी, इसलिए मां का नाम कुष्‍मांडा देवी पड़ा। ऐसी मान्‍यता है कि सृष्टि के आरंभ में चारों तरफ अंधियारा था और मां ने अपनी हल्‍की हंसी से पूरे ब्रह्मांड को रच डाला।मां कुष्‍मांडा का स्‍वरूप बहुत ही दिव्‍य और अलौकिक माना गया है। उस समय मां दुर्गा ने ब्रह्मांड की रचना की थी। यही वजह की देवी के इस स्वरूप को कूष्मांडा माता कहा जाता है। सृष्टि की उत्पत्ति करने के कारण ही इन्हें आदिशक्ति भी कहा जाता है। सिंह पर सवार मां कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं। इनके हाथों में चक्र, गदा, धनुष, कमण्डल, बाण और एक अमृत से भरा हुआ कलश होता है।और आठवें हाथ में सिद्धियों को देने वाली जप माला है ।

कुष्मांडा मंदिर कहा स्थित है जानें : छिंदवाड़ा में कुष्मांडा माता का मंदिर नहीं है, लेकिन कानपुर ज़िले के घाटमपुर में मां कुष्मांडा देवी का मंदिर है यह मंदिर कानपुर-सागर हाईवे पर है।कानपुर की ओर से आने वाले लोग नौबस्ता से सीधे घाटमपुर आकर मां के दर्शन कर सकते हैं।

इस मंदिर में माता कुष्मांडा पिंडी के रूप में विराजमान हैं।

मान्यता है कि इस मंदिर की पिंडी से चमत्कारी जल रिसता रहता है।

इस जल को आंखों पर लगाने से कई रोग दूर हो जाते हैं मां कुष्मांडा को ब्रह्मांड की उत्पत्ति करने वाली देवी माना जाता है।

माँ कुष्मांडा की पूजन विधि : मां कूष्मांडा की पूजा के लिए कलावा,कुमकुम, अक्षत, पीली मिठाई, पीले वस्त्र, पीली चूड़ियां, घी, धूप, चंदन, अक्षत और तिल आदि का प्रयोग किया जाता है।  इस दिन भी सर्वप्रथम कलश और उसमें उपस्थित देवी-देवता की पूजा करनी चाहिए। तत्पश्चात माता के साथ अन्य देवी- देवताओं की पूजा करनी चाहिए, इनकी पूजा के पश्चात देवी कूष्मांडा की पूजा करनी चाहिए।