नवरात्र विशेष: माँ का नौवे स्वरूप माँ सिद्धिदात्री की कथा,मंत्र और भोग पूजा विधि जानिए।

नवरात्र विशेष: माँ का नौवे स्वरूप माँ सिद्धिदात्री की कथा,मंत्र और भोग पूजा विधि जानिए।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक दिन भगवान शिव माता सिद्धिदात्री की घोर तपस्या कर रहे थे। उनकी तपस्या से माता सिद्धिदात्री प्रसन्न हो गई और उन्होंने भगवान शिव को आठ सिद्धियों की प्राप्ति का वरदान प्रदान कर दिया। इस वरदान के फलस्वरूप भगवान शिव का आधा शरीर देवी के रूप में परिवर्तित हो गया। इसके बाद से भगवान शिव को अर्धनारीश्वर का नाम प्राप्त हुआ। भगवान शिव का यह रूप संपूर्ण जगत में पूजा है।

जब धरती पर अनेकों राक्षसों का जन्म होने लगा था। ऋषि मुनियों अपना यज्ञ व पूजन नहीं कर पा रहे थे तथा सज्जन लोगों का जीवन भी दूभर हो गया था पृथ्वी पर निवास करना मुश्किल हो गया था।इसी बीच जब पृथ्वी पर महिषासुर नामक दैत्य के अत्याचारों की अति हो गई थी, तब उस दानव के अंत हेतु सभी देवतागण भगवान शिव तथा विष्णु जी से सहायता लेने पहुंचे। उस दानव के अंत के लिए सभी देवताओं ने तेज उत्पन्न किया जिसके ज़रिए माता सिद्धिदात्री उत्पन्न हुई।

मां सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। ये कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं। इनकी दाहिनी तरफ के नीचे वाले हाथ में कमलपुष्प है।

बीज मंत्र :-ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:।

भोग :-नवे दिन की पूजा में माता सिद्धिदात्री को पुरी, चने और हलवे का भोग लगाया जाता है और यह भोग कन्याओं को भी दिया जाता है

पूजन विधि :-शारदीय नवरात्रि की नवमी पर सबसे पहले स्नान करें।

कमल या गुलाब के फूलों की माला मां को अर्पित करें।  कन्या भोजन के लिए बनाए प्रसाद चना, हलवा, पूड़ी का प्रसाद चढ़ाएं।”ॐ ह्रीं दुर्गाय नमः  मंत्र का एक 108 बार जाप करें।कन्या पूजन करें और फिर दान-दक्षिणा दें कन्याओं से आशीर्वाद लेकर उन्हें विदा करें।अब अपना व्रत खोलें।