जमुनिया में बना रावण पंडाल: 10वे दिन होगा विसर्जन: आदिवासियों की 25 साल पुरानी परम्परा
छिंदवाड़ा से लगभग 12 किलोमीटर दूर ग्राम जमुनिया में आदिवासी समाज ने रावण की प्रतिमा बनाकर उनकी पूजा आरंभ कर दी है। परंपरा के अनुसार आदिवासी रावण को अपने पूर्वज और आराध्य मानते हैं और दशहरा के दिन भी उनका विसर्जन नहीं करते।
स्थानीय लोग रावण के साथ माता रानी की भी प्रतिमा स्थापित कर भक्ति भाव से पूजा कर रहे हैं। आदिवासी समाज का कहना है कि रावण उनके लिए केवल एक पौराणिक पात्र नहीं, बल्कि उनका आराध्य और सांस्कृतिक प्रतीक हैं।
आसपास के ग्रामों में भी रावण की प्रतिमाएं स्थापित की जा रही हैं और पूजा का सिलसिला जारी है। इस परंपरा के कारण कोई विरोध नहीं होता और स्थानीय लोग इसे अपनी सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा मानते हैं।