गणेश जी का विवाह किस से और कैसे हुआ और उनके विवाह में क्या रुकावटें आई?

गणेश जी का विवाह किस से और कैसे हुआ और उनके विवाह में क्या रुकावटें आई?

भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र गणेश जी की पूजा सभी भगवानों से पहले की जाती ऐसा वरदान गणेश जी को मिला है।शुभ कार्य करने से पहले गणेश जी की पूजा की जाती है। गणेश जी को गणपति ,विनायक,बप्पा आदि नाम से भी जाना जाता है यह गणों के देवता है और इनका वाहन एक मूषक होता है। ज्योतिषी विद्या में गणेश जी को केतु के देवता कहा गया है। गणेश जी के शरीर की रचना माता पार्वती द्वारा की गई थी एक दिन माता पार्वती ने गणेश को आदेश दिया कि उन्हें घर की पहरेदारी करनी होगी क्योंकि माता पार्वती स्नानघर जा रही थी। गणेश जी को आदेश मिलते ही गणेश जी दरवाजे पर पहरेदारी करने लगे तभी दरवाज़े पर भगवान शंकर आए और गणेश ने उन्हें अपने ही घर में प्रवेश करने से मना कर दिया, जिसके कारण शिव जी ने क्रोध में आकर गणेश का सर धड़ से अलग कर दिया। गणेश को इस दशा में देख माता पार्वती दुखी हो गई तब शिव ने पार्वती के दुख को दूर करने के लिए गणेश को पुनःजीवित करने के लिए  उनके धड़ पर हाथी का सिर लगा दिया और उन्हें प्रथम पूज्य का वरदान भी दिया।

गणेश जी का विवाह किस कारण नहीं हो पा रहा था

गणेश जी के दो दन्त भी थे जो उनके हाथी वाले सिर की सुंदरता बढ़ाते थे। किन्तु परशुराम के साथ युद्ध करने के कारण गणेशजी का एक दांत टूट गया था। तब से वे एकदंत कहलाए जाते है। दो कारणों की वजह से गणेश जी का विवाह नहीं हो पा रहा था। उनसे कोई भी सुशील कन्या विवाह के लिए तैयार नहीं होती थी। पहला कारण था उनका सिर हाथी वाला था और दूसरा कारण उनका एक दन्त था इसी कारणवश गणेशजी नाराज रहते थे।

गणेश जी का विवाह किससे और कैसे हुआ

जब भी गणेश किसी अन्य देवता के विवाह में जाते थे तो उनके मन को बहुत ठेस पहुँचती थी। उन्हें ऐसा लगा कि अगर उनका विवाह नहीं हो पा रहा तो वे किसी और का विवाह कैसे होने दें सकते है। तो उन्होंने अन्य देवताओं के विवाह में बाधाएं डालना शुरू कर दिया। इस काम में गणेश जी की सहायता उनका वाहन मूषक करता था। वह मूषक गणेश जी के आदेश का पालन कर विवाह के मंडप को नष्ट कर देता था जिससे विवाह के कार्य में रूकावट आती रहती थी इसके पीछे गणेश और मूषक की मिली भगत से सारे देवता को बहुत परेशान हो रही थी इससे परेशान होकर सभी देवता  शिवजी के पास पहुँचकर  अपनी गाथा सुनाने लगे। परन्तु इस समस्या का हल शिवजी के पास भी नहीं था तो शिव-पार्वती ने उन्हें बोला कि इस समस्या का निवारण केवल ब्रम्हा जी कर सकते है। यह सुनकर सब देवतागण ब्रम्हा जी के पास गए,  कुछ देर बाद देवताओं के समाधान के लिए ब्रम्हा जी ने दो कन्याएं ऋद्धि और सिद्धि प्रकट की| ऐसा माना जाता है दोनों ब्रह्माजी की इच्छा मात्र से उत्पन्न पुत्री थीं| दोनों पुत्रियों को लेकर ब्रह्माजी गणेशजी के पास पहुंचे और बोले की आपको इन्हे शिक्षा देनी है। गणेशजी शिक्षा देने के लिए तैयार हो गए। जब भी गणेश जी को किसी के विवाह का समाचार आता तो ऋद्धि और सिद्धि उनका ध्यान भटकाने के लिए कोई न कोई प्रसंग छेड़ देतीं थी। जिससे गणेश जी का देवता के विवाह का ध्यान ही नहीं जाता था ऐसा करने से हर विवाह बिना किसी बाधा के पूर्ण हो जाता था। परन्तु एक दिन गणेश जी को सारी बात समझ में आई जब चूहे ने उन्हें देवताओं के विवाह बिना किसी रूकावट के सम्पूर्ण होने के बारे में बताया। इससे पहले कि गणेश जी क्रोधित होते, ब्रह्मा जी उनके सामने ऋद्धि सिद्धि को लेकर प्रकट हुए और बोलने लगे कि मुझे इनके लिए कोई योग्य वर नहीं मिल रहा है कृपया आप इनसे विवाह कर लें। इस बात से गणेश प्रसन्न हुए और विवाह के लिए तैयार हो गए इस प्रकार गणेश जी का विवाह बड़ी धूमधाम से ऋद्धि और सिद्धि के साथ हुआ और इसके बाद इन्हे दो पुत्रों की प्राप्ति हुई जिनका नाम था शुभ और लाभ…

तो यह थी सम्पूर्ण कहानी थी इस प्रकार गणेश जी का विवाह सम्पन हुआ था।