मध्य प्रदेश: स्पीकर चुनाव में कैलाश विजयवर्गीय की सक्रियता के मायने
भोपाल
बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय की बात एक बार फिर सही साबित हुई. स्पीकर पद के लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही खम ठोंककर मैदान में हैं. मध्यप्रदेश विधानसभा में स्पीकर कौन होगा, ये तो कुछ समय में तय हो ही जाएगा, लेकिन स्पीकर चुनाव में कैलाश विजयवर्गीय की सक्रियता भी बहुत कुछ कह रही है.
जोड़-तोड़ में माहिर विजयवर्गीय को बीजेपी का संकटमोचक भी कहा जाता है. केन्द्रीय नेतृत्व से विजयवर्गीय की निकटता भी जगजाहिर है. साथ ही विरोधी पार्टी में भी उनके मित्रों की संख्या कम नहीं है. मध्य प्रदेश में पिछले डेढ़ दशक के शिव ‘राज’ (शुरुआती कुछ समय को छोड़कर) में शिव और कैलाश के संबंध राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय रहे हैं. आखिरकार कैलाश ने प्रदेश की राजनीति से दूर बंगाल की राह पकड़ ली. इसके बाद प्रदेश की राजनीति में उनका सीधा दखल भले ही न रहा हो, लेकिन यहां की सियासत की नब्ज पर उनकी पकड़ ढीली नहीं हुई.
इस बार कैलाश विजयवर्गीय खुद चुनाव मैदान से दूर रहे पर अपने पुत्र को टिकट दिलवाकर उसे विधानसभा तक पहुंचाने में सफल रहे. साथ ही उनकी परंपरागत सीट इंदौर-2 और उनके द्वारा छोड़ी गई महू सीट पर भी बीजेपी का परचम लहराया.
इधर, बीजेपी की पराजय से शिवराज सिंह चौहान को स्वाभाविक रूप से नुकसान तो होना ही था. केन्द्रीय नेतृत्व के पास ये संदेश भी मुखरता से गया कि शिवराज के ‘माई के लाल’ वाले बयान से पार्टी को काफी नुकसान हुआ है. शायद यही वजह है कि नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में अब नरोत्तम मिश्र और गोपाल भार्गव जैसे नाम चर्चा में हैं. कैलाश विजयवर्गीय खुद वैश्य समाज से आते हैं. ब्राह्मण-बनियों की कही जाने वाले पार्टी में इन समाजों की उपेक्षा का आरोप या जोखिम शायद अब बीजेपी नेतृत्व को गंवारा नहीं है.
ऐसी स्थिति में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को अगर बैकफुट पर न भी माना जाए तो कम से कम इतना तो कहा ही जा सकता है कि फिलहाल वे फ्रंटफुट पर नहीं खेल रहे हैं. कल तक शिवराज को बीजेपी का सबसे लोकप्रिय चेहरा समझा जाता था, लेकिन अब बदलते समीकरणों से ये भी माना जा रहा है कि ये प्रदेश बीजेपी में दूसरे पावर सेंटर के उदय की शुरुआत है.
क्रिकेट का शॉट हो या फिर फिल्म का संवाद हो 'टाइमिंग' उसे बेहद असरदार बनाती है. राजनीति पर भी यह बात पूरी तरह से लागू होती है. अवसर को सही समय पर भुनाना ही राजनीति है और इस बात को बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले कैलाश विजयवर्गीय से बेहतर कौन जान सकता है. स्पीकर का चुनाव निश्चित रूप से कैलाश विजयवर्गीय के लिए प्रदेश की राजनीति में 'मौके पर चौका' लगाने का सही समय है.
2008 के विधानसभा चुनाव में शिवराज ने कैलाश विजयवर्गीय को कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाली महू सीट से मैदान में उतारा था. कैलाश ने यहां भी अपना दमखम दिखाते हुए कांग्रेस के वर्चस्व वाली इस सीट को बीजेपी के खाते में डाल दिया था.