बिजली खरीदी: नियामक आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष, पीएस पर उठी उंगलियां
भोपाल
प्रदेश में बिजली खरीदी को लेकर भाजपा सरकार जांच के दायरे में आ सकती है। ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव आईपीसी केसरी ने हाल ही में मुख्यमंत्री और मंत्रियों के साथ हुई बैठक में बताया था कि निजी कंपनियों से जो अनुबंध हुए हैं उनमें बिजली खरीदनी ही होगी और नहीं खरीदी तो भी निश्चित राशि देना जरूरी है। दो साल पहले 2400 करोड रुपए दिए गए थे। पिछले वर्ष 1500 करोड़ रू और इस वर्ष 1400 करोड़ की राशि दी जायेगी।
5 जनवरी 2011 को मध्य प्रदेश पावर ट्रेडिंग कंपनी और तीनों डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों ने निजी क्षेत्र की पांच कंपनियों के साथ पावर परचेज एग्रीमेंट किये। इन कंपनियों में एमवी पावर अनूपपुर, जे पी निगरी सिंगरौली, जेपी बीना पावर, झाबुआ पावर सिवनी, बीएल पावर हैं। पावर परचेज एग्रीमेंन्टो में नियमों की जमकर धज्जियां उड़ाई गई। इनमें केंद्र सरकार की नेशनल टेरिफ पॉलिसी का पालन नहीं किया गया और अलग-अलग जगह पर एक ही अधिकारियों के हस्ताक्षर कर एक ही दिनांक को सारे एग्रीमेंट कर लिए गए। इसके पीछे तर्क यह दिया गया कि नेशनल टेरिफ पॉलिसी में 6 जनवरी 2006 में यह प्रतिबंध था कि निजी क्षेत्रों से बिजली खरीदने में अब बिड आवश्यक होगी जबकि सरकारी क्षेत्र की 5 कंपनियों के लिए 5 साल की छूट दी गई थी। अब हालात यह है कि 25 साल तक इन एग्रीमेंटो के तहत इन कंपनियों से बिजली ली जाय या न ली जाए सरकार को राशि अदा करनी ही होगी। जिस समय यह पावर परचेज एग्रीमेंट किए गए विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष राकेश साहनी और ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव मोहम्मद सुलेमान थे।