J&K में किसकी गलती? कांग्रेस के आरोपों पर जेटली का जवाब
नई दिल्ली
राज्यसभा में गुरुवार को जम्मू-कश्मीर मुद्दे पर बहस के दौरान कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि पिछले साढ़े चार साल में कश्मीर में हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं। आज़ाद ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा भंग करने को लेकर भी केंद्र सरकार की भूमिका को कठघरे में खड़ा किया। सरकार की ओर से पलटवार करते हुए अरुण जेटली ने आजाद को जवाब दिया कि कश्मीर की समस्या कांग्रेस की लगातार गलत नीतियों का नतीजा हैं, जिनसे कांग्रेस को कभी मुक्ति नहीं मिलेगी।
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके गुलाम नबी आज़ाद ने कहा, 'कश्मीर के मुद्दे पर बात करने के लिए उसका इतिहास जानना ज़रूरी है। जब तक इतिहास नहीं जानेंगे, तब तक वो सरकारें गलती करेंगी, जो इतिहास से जुड़ी नहीं हैं। जो भी सरकारें बीच में आईं, जिन्हें कश्मीर के इतिहास के बारे में जानकारी नहीं थी। 1946 से कश्मीर में टू-नेशन थिअरी सबसे बड़ा मुद्दा है।' उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी ने राज्य में तोड़फोड़ कर सरकार बनाने की कोशिश कर रही थी।
राज्यसभा में आजाद ने कहा कि इन चार साल में सबसे ज्यादा संघर्ष विराम तोड़ा गया और उससे सीधे स्थानीय नागरिकों को नुकसान होता है। आतंकवाद इन 4 साल में अपने चरम पर पहुंच गया है। सीजफायर में सबसे ज्यादा शहरी इन चार साल में मारे गए हैं। उन्होंने कहा कि आपने खूब बाजे-गाजे के साथ कश्मीर में सरकार बनाई थी, लेकिन जब आप सभी मोर्चे पर विफल हो गए तो समर्थन वापस ले लिया। आजाद ने कहा कि क्षेत्रीय पार्टियां समर्थन वापस लेती हैं लेकिन यहां तो केंद्र सरकार ने ही समर्थन वापस ले लिया। आजाद ने कहा कि आप वहां तोड़-फोड़ की कोशिश कर रहे थे, आपने नेशनल कॉन्फ्रेंस से लेकर पीडीपी और कांग्रेस को तोड़ने की कोशिश की जबकि इन्हीं दलों की सरकारों में वहां सबसे ज्यादा काम किया था। उन्होंने कहा कि हमें यह मंजूर नहीं है, वहां चुनाव कराने चाहिए थे।
जेटली ने इसके जवाब में कहा, 'कश्मीर में जिस अलग अस्तित्व की कल्पना की गई थी, 70 बरसों में वह अलगाववाद की तरह बढ़ी। जो वादे कांग्रेस ने कर दिए, उसकी कीमत देश को कई बरसों तक अदा करनी पड़ी। आप सत्ता में तो आ गए, लेकिन सत्ता में चलने के इतिहास को भूल गए। 1957, 1962, 1967 में जम्मू-कश्मीर में चुनाव कैसे होता था, उस पर काफी कुछ लिखा गया है। अक्टूबर 1947 में जब सीमापार से हमला हुआ, तो प्रजा परिषद को लोगों ने अपना योगदान दिया। हम नेताओं का योगदान नहीं भूलेंगे, लेकिन आपको लोगों का योगदान भी नहीं भूलना चाहिए। ऐसी राजनीति के बाद आप कहते हैं कि कश्मीर में पिछले साढ़े चार में अलगाववाद की भावना बढ़ी।'
कांग्रेस पार्टी और शेख अब्दुल्ला के बीच सियासी रस्साकशी को याद करते हुए जेटली ने कहा, '1986 में शेख साहब से समझौते के बाद 1989 तक कश्मीर में जो हुआ, उस दौरान ही अलगाववाद की भावना सबसे ज़्यादा बढ़ी। जम्मू-कश्मीर में लड़ाई अलगाववाद और आतंकवाद के खिलाफ है। वहां की स्थानीय पार्टियों को आतंकवाद और अलगाववाद से निपटने के लिए मतभेदों के बावजूद कुछ बातों पर सहमत होना होगा। इस अलगाववाद का पूरा इतिहास है, नीतियां हैं। 2010 के जिस समय को आप जिसे कश्मीर का गोल्डन पीरियड कह रहे हैं, उस दौरान पथराव शुरू हुआ। यह अलगाववादी नेताओं की नीति थी, जिन्होंने कश्मीर के लड़कों को हथियारों में बदल दिया।'
आखिर में जेटली ने कहा, 'इतिहास जब फैसला करेगा कि जम्मू-कश्मीर पर श्यामा प्रसाद मुखर्जी का दृष्टिकोण सही या था या पंडित जवाहरलाल नेहरू का, तो आपको बहुत तकलीफ होगी। हमें कश्मीर के भविष्य पर बात करनी होगी। उस भविष्य की सोच में कश्मीर में जो गलतियां हुईं, उसके ब्लेमगेम से बाहर निकलकर विकास के बारे में सोचना होगा। आपको इतिहास की किसी गलती से मुक्ति नहीं मिल पाएगी।'