28 साल से मुरैना में जीत के लिए तरस रही कांग्रेस, बीजेपी का सोशल मैनेजमेंट भारी पड़ रहा कांग्रेस-बसपा पर
मुरैना
28 साल से मुरैना में जीत के लिए तरस रही कांग्रेस सामाजिक ताने बाने को आधार बनाकर भाजपा को चुनौती देने की तैयारी में है। यहां हावी जातीय समीकरणों को साधने में भाजपा आगे है, उधर बहुजन समाज पार्टी ने भी सोशल मैनजेमेंट के लिहाज से कांग्रेस के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं। अंतिम दौर में बहुजन समाज पार्टी द्वारा प्रत्याशी बदले जाने से यहां मुकाबला त्रिकोणीय होने की स्थिति बन गई है।
चंबल की माटी के चटख अंदाज वाली मुरैना-श्योपुर संसदीय सीट पर कांग्रेस के सामने पिछले 6 लोकसभा चुनावों से लगातार मिल रही पराजय को तोड़ना चुनौती है। पिछले लोकसभा चुनाव में यहां कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही। कांग्रेस की ओर से डॉ. गोविन्द सिंह को तब 184253 वोट मिले जबकि बीजेपी के अनूप मिश्रा 375567 मतों के साथ भारी अंतर से विजयी रहे। दूसरे स्थान पर बसपा के बृन्दावन सिंह सिकरवार रहे, उनको 242586 वोट मिले थे।
इस चुनाव में भाजपा से केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा ने सांसद अनूप मिश्रा का टिकट काटकर तोमर को चुनाव में उतारा है। वहीं कांग्रेस की ओर से रामनिवास रावत चुनाव मैदान में हैं। बीएसपी से करतार सिंह भड़ाना को यहां उम्मीदवार बनाया गया है। विधानसभा चुनाव के दौरान यहां एट्रोसिटी एक्ट बड़ा मुद्दा था। हालांकि इस समय गरीब सवर्ण को आरक्षण देने के फैसले को भाजपा ने मुद्दा बनाया है।
कांग्रेस यहां 1991 से नहीं जीत सकी है। एक बार जनसंघ की जीत को मिलाकर बीजेपी यहां कुल 7 बार अपना झंडा बुलंद कर चुकी है। इससे पहले एक बार 1977 में भारतीय लोकदल से छविराम अर्गल जीते थे लेकिन बाद में वह भाजपा में चले गए और 1989 में एक बार फिर वह यहां से सांसद चुने गए। 1967 से अस्तित्व में आई इस लोकसभा सीट पर सबसे पहली जीत निर्दलीय आतमदास ने दर्ज की और वह मुरैना के पहले सांसद बने।
मुरैना संसदीय क्षेत्र की तीन विधानसभा में बीएसपी का काफी प्रभाव है। हालांकि बीते विधानसभा चुनाव में इस फैक्टर से बीजेपी घाटे में रही। इस लोकसभा क्षेत्र में दो जिलों मुरैना और श्योपुर की कुल 8 विधानसभा आती हैं जिनमें मुरैना की 6 और श्योपुर की 2 विधानसभा शामिल हैं।