सॉफ्ट स्‍टेट से हम एक अजेय ताकत बन गए हैं-राज्यवर्धन राठौर

नई दिल्ली 
मैं उस क्षण को जानता हूं जब सैनिक अपनी वर्दी में मिशन के बारे में जानकारी के लिए रात के अंधरे में इकट्ठा होते हैं। गोलियों से भरी राइफलों से आती आवाज और लक्ष्‍य की ओर सधे हुए कदमों के साथ आगे बढ़ना। उस क्षण जब अज्ञात भय के ऊपर जिम्‍मेदारी का भाव आसाधारण तरीके से हावी हो जाता है। यह त्‍वरित कार्रवाई का आह्वान होता है जहां आप पूरे देश के लिए सबसे आगे चलने वाले रक्षक बन जाते हैं। एक सैनिक के रूप में मुझे पता है कि किस तरह जब सेना के लक्ष्‍य स्‍पष्‍ट होते हैं तो वह बेहद उम्दा प्रदर्शन करती है। एक कुशल नेतृत्व इसी स्‍पष्‍टता को लाने में मदद करता है। 
 
पिछले कई दशकों से यथास्थिति 
पाकिस्‍तान द्वारा पाले जाने वाले संगठनों द्वारा आतंकी हमला करना और भारतीय नेतृत्‍व द्वारा इसकी निंदा करना लगातार चलने वाली हिंसा के दो पहलू बन गए थे। इसकी एक मुख्‍य वजह यह है कि इस तरह की निंदा ने पाकिस्‍तान के व्‍यवहार में किसी तरह का प्रत्‍यक्ष बदलाव नहीं किया। पिछले दशकों में पाकिस्‍तान ने इससे निपटना सीख लिया है। उनका एकमात्र जवाब होता है और वह है- आरोपों का पुरजोर खंडन। भारतीय नेतृत्‍व सीमा पर तनाव बढ़ने के डर से अकसर चुप रहता था, इसने एक तरह भारत के सॉफ्ट स्‍टेट होने की धारणा पैदा की। 

पाकिस्‍तान ने इस डर का हमेशा फायदा उठाया और कश्‍मीर के 'जिन्न' को जिंदा रखा ताकि उसके अपने गुप्‍त उद्देश्‍यों को पूरा किया जा सके। एक सैनिक के रूप में मुझे याद है कि हम पर हमेशा यह जिम्‍मेदारी रहती थी कि हमेशा अलर्ट रहो। वे हमला करें, इससे पहले ही उनकी पहचान करो और संभव हो तो उनके हमले से पहले ही बचाव करो। उधर दुश्मन को हमसे पहले ही पता होता था कि उसे कब, कहां और कैसे हमला करना है। हालांकि बाद के वर्षों में यह बदला और आज अंतत: हम इस चक्र को तोड़ रहे हैं। 

मैं यहां साफ करना चाहता हूं कि सैनिक भी शांति चाहते हैं, लेकिन उसी शांति के लिए आपको लड़ना होता है। कार्रवाई के दौरान मैंने अपने साथियों और दोस्‍तों को खोया है। मुझे याद है जब मैंने पहली बार एक शहीद जवान के परिवार को खत लिखा था। मैंने लिखा, 'एक दिन सबको मरना होता है, लेकिन वे लोग धन्‍य होते हैं जो अपने देश के लिए कुर्बानी देते हैं।' 

यह खत जब मैंने लिखा था, उस समय मैं मात्र 24 साल का था। युवा अधिकारी के रूप में हम अकसर सवाल करते हैं कि कब हम दुश्मन को युद्ध का अहसास कराएंगे, कब हम उन्हें साथियों के शवों को उठाते समय होने वाले दर्द का अहसास कराएंगे? आज 24 साल बाद हम उन तक युद्ध के दंश को ले जा पाए हैं। 

एक नई सामान्‍य स्थिति 
हमने लंबे समय तक अपने जवानों और सामानों को खोया है, लेकिन जो पहले सामान्‍य माना जाता था, उससे अलग अब भारत न केवल फील्डिंग कर रहा है बल्कि बैटिंग भी कर रहा है। अचानक एक सॉफ्ट स्‍टेट से हम एक अजेय ताकत बन गए हैं। शांति में भी हमारा शत्रु सो नहीं सकता है। जो लोग नरम रुख की वकालत कर रहे हैं, वे ऐसी गलती न करें। शत्रु ने हमारे शांति प्रस्‍ताव और वार्ता के प्रति कई दशकों तक कोई दया नहीं दिखाई, लेकिन एक समय ऐसा आता है जब आपको शांति वापस लाने के लिए युद्ध की तैयारी करनी ही होती है। 

मैं जानता हूं कि जनता में यह चर्चा है कि दूसरी तरफ कितने लोग मारे गए, लेकिन जो लोग जवाब तलाश रहे हैं, वे व्‍यापक तस्‍वीर को छोड़ रहे हैं। यह उसी तरह से है जैसे उन्‍हें सेना का टैंक दिखाया जाए और वे कहें कि 'यह माइलेज कितना देता है।' प्रिय निंदा करने वालो, संख्‍या गिनना बंद करिए। लंबे समय बाद हमारा शत्रु असुरक्षित महसूस कर रहा है। उनके सुरक्षित ठिकाने अब सुरक्षित नहीं रहे। पाकिस्तान की तरफ से सुबह 4 बजे ट्वीट किया गया! स्‍पष्‍टीकरण देने के लिए इतनी जल्‍दी क्‍या थी! यदि केवल खंडन करना था और कुछ भी नहीं हुआ था तो तत्‍काल इज्‍जत बचाने के लिए जेट क्‍यों दौड़ाए? 

उनका एक F-16 मार गिराया गया, 12 मिसाइलें फायर की गईं, मगर कोई भी हमारे सैन्‍य प्रतिष्‍ठानों को निशाना नहीं बना सकीं। हमारा पायलट भी 50 घंटे से कम समय में वापस आ गया। क्‍यों उन्हें संसद का आपातकालीन सत्र बुलाना पड़ा जिसमें विपक्षी सदस्‍यों ने 'शेम…शेम' के नारे लगाए। बालाकोट साइट को क्‍यों सैन्‍य घेरे में रखा गया है और क्यों वहां किसी को जाने नहीं दिया जा रहा है? जबकि ऐसी खबरें हैं कि मदरसे की जमीन के अंदर ही मारे गए लोगों को दफनाया गया है? 

कारण स्‍पष्‍ट, बड़ी संख्‍या में आतंकी मारे गए 
उन्होंने (दुश्मन ने) कभी अपने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि एलओसी से 85 किमी दूर और अंतरराष्‍ट्रीय सीमा के पार हमला होगा। उन्‍होंने कभी यह सोचा नहीं होगा कि भारत इतना साहस दिखाएगा और एयर स्‍ट्राइक करेगा। लेकिन दुखद है कि पाकिस्‍तान के पास अभी भी सहानुभूति देने वाले लोग हैं। ये लोग यह विश्‍वास करते हैं कि पाकिस्‍तान जो भी कह रहा है, सही कह रहा है और उन्हें अपने सुरक्षाबलों पर ही कम भरोसा होता है। 

चलिए इस बात का विश्‍लेषण करिए कि पिछले 5 साल में क्‍या हुआ। सेना वही है, लोग भी वही हैं, सेना के हथियार (यूपीए 1 और 2 का शुक्रिया अदा करने की जरूरत नहीं) भी वही हैं, तो फिर आखिए ऐसा क्‍या हो गया जिसने आतंकवादियों के प्रति न्‍यू इंडिया की प्रतिक्रिया में इतना बड़ा बदलाव कर दिया? 
 

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