शुरू होने वाला है होलाष्टक और खरमास, होली तक भूल से भी ना करें ये काम

इस साल होलिका दहन 20 मार्च तथा 21 मार्च को रंग खेला जाएगा। होली से आठ दिन पहले होलाष्टक लग जाता है जो इस बार 14 मार्च से शुरू हो जाएगा और 21 को होली के पर्व के साथ खत्म होगा। हिंदू धर्म के अनुसार होलाष्टक के दौरान कोई भी शुभ कार्य करने की मनाही होती है। तिथि के अनुसार होलाष्टक फाल्गुन माह की शुक्लपक्ष अष्टमी से प्रारंभ होता है। माना जाता है कि होलिका दहन के लिए लकड़ियां एकत्र करने का काम होलाष्टक के दिन से ही शुरू कर दिया जाता है। इस साल होलाष्टक के साथ मीन संक्रांति भी है इसलिए इस दौरान खरमास भी शुरू हो जाएगा।

कब से है होलाष्टक और खरमास
बुधवार (13 मार्च) की रात को 11 बजकर 38 मिनट से अष्टमी तिथि शुरू हो जाएगी। धार्मिक मान्यता के अनुसार सूर्योदय के साथ तिथि की शुरुआत होती है इसलिए 14 मार्च से होलाष्टक शुरू होगा, जो 20 मार्च को होलिका दहन के साथ समाप्त हो जाएंगे।

15 मार्च से सूर्य मीन राशि में प्रवेश करेगा और वो 14 अप्रैल तक रहने वाला है। इस वजह से खरमास भी प्रारम्भ हो जाएगा। खरमास शुरू हो जाने के कारण इस दौरान कोई भी शुभ अनुष्ठान जैसे विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन आदि काम नहीं किए जाते हैं।

होलाष्टक को क्यों माना जाता है अशुभ
ऐसा माना जाता है कि होली से आठ दिन पहले सभी नौ ग्रहों का व्यवहार उग्र हो जाता है। प्रकृति में नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ जाता है। इस वजह से सभी शुभ कार्य इस दौरान करने से बचना चाहिए।

पौराणिक मान्यता ये भी है कि हिरण्यकश्यप ने फाल्गुन शुक्लपक्ष अष्टमी को ही भक्त प्रह्लाद को बंदी बनाया था और उसके साथ दुर्व्यवहार किया था। होलिका ने भी अपने भाई की बात रखने के लिए इसी दिन प्रह्लाद को जलाने की तैयारी शुरू की थी।

शिवजी से जुड़ा हुआ है होलाष्टक
ये भी कथा है कि होलाष्टक के दिन भगवान शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। इस वजह से प्रकृति में निरसता बढ़ गयी थी और सभी ने शुभ कार्य करना बंद कर दिया था। होली के दिन ही कामदेव को वापस जीवित होने का वरदान मिला जिसके बाद फिर से सबकुछ सामान्य हो गया।

होलाष्टक पर इन कामों की होती है मनाही

इस दौरान शादी विवाह से जुड़े कार्य नहीं करने चाहिए।

नए घर में प्रवेश नहीं करना चाहिए। घर में सुख शांति का वास नहीं हो पाता है।

इस दौरान कोई पूजा ना कराएं क्योंकि उसका फल नहीं मिल पायेगा।

शिशु का मुंडन करने का संस्कार ना कराएं।

इस दौरान दान पुण्य का काम भी वर्जित होता है।

प्रकृति में नकारात्मक शक्तियां बढ़ जाती हैं, इस वजह से ये समय तांत्रिक विद्या जानने वालों के लिए तपस्या करने का सही समय होता है।

 

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