वित्त मंत्री जेटली ने दिए कई और बैंकों के विलय के संकेत 

 
नई दिल्ली 

फाइनैंस मिनिस्टर अरुण जेटली ने कहा है कि देश की बैंकिंग इंडस्ट्री में कंसॉलिडेशन बढ़ना चाहिए यानी बैंकों की संख्या में कमी आनी चाहिए। उन्होंने कहा कि देश को कम, लेकिन ताकतवर बैंकों की जरूरत है ताकि बड़े आकार से हासिल होने वाले लाभ लिए जा सकें। उन्होंने 1 फरवरी के अंतरिम बजट में घोषित वेलफेयर प्रोग्राम्स से राजकोष की स्थिति पर असर पड़ने की चिंताएं खारिज कर दीं।  
  
बजट के बाद आरबीआई के बोर्ड को संबोधित करने की रस्म निभाने के बाद उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि ऐसी सभी योजनाओं की एक लागत है, लेकिन पिछले पांच साल में रेवेन्यू ग्रोथ भी बहुत ज्यादा रही है। आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि वह सरकारी और प्राइवेट बैंकों के प्रमुखों से इसी हफ्ते मिलेंगे और ब्याज दरों में कमी का असर लोगों तक पहुंचाने के बारे में चर्चा करेंगे। 

उन्होंने कहा कि एक समय, खासतौर से वित्त वर्ष 2013 और वित्त वर्ष 2014 में सरकार को महात्मा गांधी नैशनल रूरल एंप्लॉयमेंट गारंटी ऐक्ट प्रोग्राम के लिए 28000 करोड़ रुपये का इंतजाम करने में भी दिक्कत हो रही थी। उन्होंने कहा, ‘आज 60000 करोड़ रुपये का इंतजाम करना संभव है।’ सरकार ने छोटे और सीमांत किसानों के लिए सालाना 6000 रुपये कैश ट्रांसफर की घोषणा की है, जिस पर इस साल 20000 करोड़ रुपये और अगले साल 75000 करोड़ रुपये की लागत आएगी। जेटली ने कहा, ‘मेरा अनुभव यही रहा है कि जब हम योजनाओं की घोषणा करते हैं और एक टारगेट तय कर देते हैं, तो उनके लिए बजट में इंतजाम किया जाता है, जिसका असर रेवेन्यू ग्रोथ में भी दिखता है।’ 

जेटली ने कहा कि देश को बड़े बैंकों की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘एसबीआई मर्जर का हमारा अनुभव रहा है। अब दूसरा मर्जर हो रहा है।’ उन्होंने देना बैंक और विजया बैंक के बैंक ऑफ बड़ौदा में विलय का हवाला दिया। साल 2017 में एसबीआई में उसके पांच असोसिएट बैंकों और भारतीय महिला बैंक का विलय किया गया था। जेटली ने कहा, ‘भारत को कम और बड़े बैंकों की जरूरत है, जो दमदार हों। बॉरोइंग रेट्स से लेकर ऑप्टिमम यूटिलाइजेशन तक हर मामले में बैंकिंग सेक्टर में बड़े आकार से फायदा होगा।’ 
 

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