लोकसभा चुनाव 2019 : पाला बदलने वालों और बेमेल गठबंधनों की भी इस बार कड़ी परीक्षा

 नई दिल्ली
 
लोकसभा के यह चुनाव कई मायने में महत्वपूर्ण हैं। चुनाव में उन नए राजनीतिक गठबंधनों की भी कड़ी परीक्षा होगी जो दलों ने पाला बदलकर बनाए हैं या फिर अपनी नीतियों से उलट जाकर बनाए हैं। इनमें उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ा सपा-बसपा गठबंधन भी शामिल है, जिस पर पूरे देश की नजरें हैं। इसकी सफलता-विफलता भावी राजनीति पर बड़ा असर डाल सकती है। करीब तीन दशक पूर्व राष्ट्रीय दलों को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने से गठबंधन राजनीति की शुरुआत हुई। क्षेत्रीय दल मजबूत हुए और वह राष्ट्रीय दलों के साथ गठबंधन का हिस्सा बने। 

राष्ट्रीय स्तर पर एनडीए और यूपीए दो बड़े गठबंधन आज भी बरकरार हैं और पिछले कुछ दशकों से राजनीति इन्हीं के ईद-गिर्द घूम रही है। इस दौरान कई गठबंधन सरकारें सफल रही तो कई बीच में ही गिर गई। लंबे अरसे के बाद पिछले चुनाव में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिला। लेकिन फिर भी भाजपा ने एनडीए के अस्तित्व को बरकरार रखा जिसकी जरूरत उसे इन चुनावों में पड़ सकती है। 

इधर, गठबंधन राजनीति में कई बदलाव देखे जा रहे हैं। क्षेत्रीय दल और छोटे दल बेहद महत्वाकांक्षी हो गए हैं। वे अपना नफा-नुकसान देखकर जल्दी पाला बदलने लगे हैं। कभी इस गठबंधन के साथ तो कभी उस गठबंधन के साथ। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश में दो परस्पर धुर विरोधी दलों सपा-बसपा नेअपनी जमीन बचाने के लिए 24 साल के बाद हाथ मिला लिए। दोनों दलों के कार्यकर्ता अलग हैं। मतदाता अलग हैं। मतदाता यह भी समझ रहे हैं कि वे किस प्रकार अपने फायदे के लिए अभी एक हुए हैं। ऐसे में गठबंधन के लिए यह परीक्षा की घड़ी है। 

इसबार रालोद सपा-बसपा के साथ : रालोद ने उत्तर प्रदेश में पिछला चुनाव कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा था। लेकिन इस बार वह कांग्रेस के साथ जाने की बजाय सपा-बसपा के गठबंधन के साथ गया है। यूपी में कुछ छोटे दलों ने पाला बदलकर दूसरे गठबंधनों का दामन थामा है। बिहार में चुनावी जंग एनडीए और यूपीए के बीच है। लेकिन दोनों गठबंधनों के कई मोहरे बदल चुके हैं। राज्य में पिछले लोकसभा चुनाव में जद (यू) एनडीए का हिस्सा नहीं था। लेकिन इस बार एनडीए का हिस्सा है। जबकि 2015 में हुए विधानसभा चुनावों में जद यू और राजद दोनों यूपीए या महागठबंधन का हिस्सा थे। लेकिन इस बार स्थितियां बदल चुकी हैं। जद यू एनडीए के साथ है। जबकि राजद यूपीए में है। पिछली बार एनडीए के घटक रहे रालोसपा ने इस बार यूपीए का दामन थाम लिया है। ऐसे में जनता इन बदलावों को कितना स्वीकार करती है और लोगों के वोट कैसे आपस में ट्रांसफर होते हैं, यह इन दलों के लिए चुनौती होगी। इसी प्रकार आंध्र प्रदेश में तेदेपा ने पिछली बार भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। लेकिन चुनाव से ठीक पूर्व उन्होंने भाजपा का साथ छोड़ दिया और कांग्रेस से हाथ मिला लिया। आंध्र प्रदेश में लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव भी हैं। इसलिए तेदेपा के पाला बदल राजनीति की भी परीक्षा होनी तय है। 

पूर्व में विफल रहे हैं कई बेमेल गठबंधन
पूर्व में कई बेमेल गठबंधन सफल नहीं हुए। इनमें कश्मीर में भाजपा और पीडीपी गठबंधन ने मिलकर सरकार बनाई लेकिन अंत में यह बिखर गया। पश्चिम बंगाल में पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और वाममोर्चे ने मिलकर चुनाव लड़ा लेकिन जनता ने उन्हें ठुकरा दिया और तृणमूल कांग्रेस भारी मतों से जीती। दरअसल, पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और वामदल एक-दूसरे के प्रतिद्वंदी हैं और केरल में उनका एक साथ खड़ा होना जनता को रास नहीं आया। थोड़ा और दूर तक जांए तो उप्र में सपा-बसपा का गठबंधन भी पूर्व में फेल हो चुका है। 

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