लोकसभा चुनाव: ग्वालियर, भिण्ड, मुरैना की सीटें भाजपा की और  गुना-शिवपुरी सीट सिंधिया परिवार के पाले में रही हैं

ग्वालियर
अंचल की जिन चार लोकसभा सीटों पर 12 मई को मतदान होना है वहां चुनावी पारा पूरे शबाब पर है। इनमें से तीन सीटे भाजपा के कब्जे में रही है। इनमें ग्वालियर, भिण्ड, मुरैना की सीटें शुमार हैं, जबकि गुना-शिवपुरी सीट अरसे से कांग्रेस या यूं कहें अंचल के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार सिंधिया परिवार के खाते में रही है। राजनीतिक जमावट की बात करें तो भिण्ड और मुरैना सीट पर जातिगत समीकरण हावी है। यहां पर भाजपा व कांग्रेस ही मुख्य प्रतिद्धंदी दल है, जबकि गुना सीट सिंधिया की परंपरागत सीट है। भाजपा ने यहां बहुत कमजोर प्रत्याशी उतारा है। यहां देखने वाली बात ये होगी कि सिंधिया की जीत का मार्जन कितना बढ़ता है। ग्वालियर सीट पर विकास के साथ साथ मोटी फैक्टर भी देखा जा रहा है। इस सीट पर कांग्रेस व भाजपा के दो पुराने राजनीतिक परिवारों के वारिस आमने सामने है। दोनों की छवि साफ सुथरी है ऐसे में मुकाबला बेहद दिलचस्प बन पड़ा है। जहां भाजपा की कोशिश अंचल की तीनों सीटों को बरकरार रखने की है वहीं कांग्रेस इस बार भाजपा के तिलिस्म को तोड़ना चाहती है। 

ग्वालियर सीट पर इस बार मुकाबला रोचक है। यहां दो राजनीतिक परिवारों की प्रतिष्ठा दांव पर है। कांग्रेस प्रत्याशी अशोक सिंह जहां आजादी के लिए लड़ने वाले कक्का डोंगर सिंह व अपने पिता पूर्व मंत्री स्व. राजेंद्र सिंह की राजनीतिक विरासत को लेकर आगे चल रहे है। वहीं भाजपा प्रत्याशी विवेक शेजवलकर भी जनसंघ व भाजपा के संस्थापकों में शुमार रहे एनके शेजवलकर की विरासत के प्रतिनिधि है। अशोक सिंह पिछले तीन लोकसभा चुनावों में पस्त रहे है। इस बार पार्टी ने उन्हें फिर प्रतिनिधि बनाया है जबकि विवेक शेजवलकर दूसरी बार के महापौर है। कांग्रेस जहां विवेक शेजवलकर के महापौर काल को लेकर उन्हें घेर रही है, वहीं शेजवलकर को मोटी फेक्टर से काफी उम्मीदें है। आम तौर पर महल के प्रभाव वाली इस सीट पर ऊपरी तौर पर तो महल छाया दिखती नही ंहै, लेकिन यह साफ तौर पर नही कहा जा सकता कि ये चुनाव महल की छाया से परे है। कांग्रेस की ओर से ज्योतिरादित्य सिंधिया ने केवल एक सभा अशोक सिंह के लिए की वहीं यशोधरा राजे भी विवेक के लिए एक बार ही आर्इं। हालांकि दोनों पार्टियों के दिग्गज नेता यहां सभाएं ले चुके है। मोदी व राहुल गांधी की सभाओं में खूब भीड़ जुटी। देखना है कि इस बार ये सीट किसके खाते में जाती है। 

चंबल की ये सीट काफी महत्वपूर्ण है। यहां पर जो दल ब्राह्मण क्षत्रिय वोटों को साध लेगा जीत उसी की होगी। पिछले 30 सालों से काबिज भाजपा ने यहां से संध्या राय को मैदान में उतारा है जबकि कांग्रेस ने युवा देवाशीष को मैदान में उतारा है। देवाशीष दिल्ली की छात्र राजनीति से  िनकलकर आए है। दोनों ही प्रत्याशी अनुसूचित वर्ग से है सो जाहिर है कि अनुसूचित वर्ग के वोट बराबर बटेंगे। ऐसे में जो भी दल ब्राह्मण व क्षत्रिय वोटों में सेंध लगाएगा, जीत उसी की होगी। कांग्रेस ने इस दिशा में यहां काम किया है। भिंड में ब्राह्मण चेहरे चौधरी राकेश सिंह व ठाकुर नेता नरेंद्र सिंह कुशवाह की कांग्रेस में आमद ब्राह्मण व क्षत्रिय वोटों को साधने के लिए ही की गई है। हालांकि 2 अप्रैल के दलित आंदोलन से जुड़े रहने के चलते भिंड के क्षत्रिय व ब्राह्मण समाज में देवाशीष का खासा विरोध देखा जा रहा है।

चंबल की इस सीट पर भाजपा सरकार में मंत्री रहे नरेंद्र सिंह तोमर को दोबारा आने के बाद दूसरी पार्टी के प्रत्याशियों के समीकरण गड़बड़ा गए हैं। यहां के वोटर्स एक अलग राय रखता है। वह अपने यहां ऐसे प्रत्याशी को जिताना चाहता है जो केंद्र में मंत्री बने और संसदीय क्षेत्र का विकास करे। यह रुझान नरेंद्र सिंह तोमर की ओर इंगित करता है। बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ने आए भड़ाना जिन गुर्जर और दलित वोटों के जरिए सांसद में जाने का मन बनाए हुए थे वह तिलिस्म टूट गया है। कांग्रेस प्रत्याशी राम निवास रावत अभी  हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में हार का सामना कर चुके हैं, अभी वह पार्टी के दलित, गुर्जर और मुस्लिम नेताओं के मान मनोव्वल में जुटे हैं।  उधर वोटर्स का मानना है कि अगर मोदी सरकार आती और नरेंद्र सिंह जीतते हैं तो उनका मंत्री बनना तय है वहीं कांग्रेस गठबंधन जीतता है तो रामनिवास रावत र्सिफ सांसद ही रहेंगे। अब देखना है पलड़ा किस तरह झुकता है।

गुना-शिवपुरी सिंधिया राजपरिवार की परंपरागत सीट है। 1957-62 तक इसके बाद 1977-71 स्व. राजमाता विजयाराजे सिंधिया इस पर काबिज रहीं। फिर 1971 से लेकर 1984 तक स्व. माधव राव सिंधिया ने यहां का नेतृत्व किया। 1989 से 1999 तक स्व. राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने यहां की कमान संभाली। 1999 से 2002 तक स्व. माधवराव सिंधिया यहां के सांसद रहे। 2002 से इस सीट पर ज्योतिरादित्य सिंधिया का कब्जा है। महल के इस अभेद किले में अभी तक भाजपा सेंध लगाने में असफल रही है। हालांकि पिछले चुनाव में शिवपुरी और गुना शहर से श्री सिंधिया को हार का मुंह देखना पड़ा था। इस बार चुनाव की कैंपन उन्होंने बहुत पहले कर दिया था। उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी के चलते उनके चुनावी कैंपन को धार देने का काम उनकी पत्नी प्रियदर्शिनी राजे सिंधिया ने किया। श्री सिंधिया जीत को लेकर तो पूरी तरह से आश्वस्त हैं, लेकिन पूरी मेहनत रिकार्ड के लिए हो रही है। उधर भाजपा ने इस सीट पर केपी सिंह यादव जैसे चेहरे को टिकट देकर ऐसा लगता है कि सिंधिया के लिए रास्ता खाली कर दिया है।

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