राहुल गांधी को भेजा इस्तीफा, राज बब्बर ने ली हार की जिम्मेदारी
लखनऊ
लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन की जिम्मेदारी प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर ने लेते हुए अपना इस्तीफा राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को भेज दिया है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस महज एक सीट जीत सकी है। फतेहपुर सीकरी से कांग्रेस के उम्मीदवार राज बब्बर को हार का सामना करना पड़ा। भाजपा के उम्मीदवार राजकुमार चाहर ने राज बब्बर को तीन लाख से ज्यादा वोटों से चुनाव हरा दिया।
पार्टी ने पहले राज बब्बर को मुरादाबाद से प्रत्याशी बनाया था, लेकिन उन्होंने वहां से चुनाव लड़ने से मना कर दिया था। इसके बाद फतेहपुर सीकरी से मैदान में उतरे। भाजपा ने फतेहपुर सीकरी से मौजूदा सांसद चौधरी बाबूलाल का टिकट काटकर राजकुमार चाहर को प्रत्याशी बनाया था। जिसका बाबूलाल ने विरोध किया। तब माना जा रहा था कि भाजपा का नुकसान हो सकता है, लेकिन चौंकाने वाले नतीजे आए।
राज बब्बर ने ट्वीट कर कहा, “जनता का विश्वास हासिल करने के लिए विजेताओं को बधाई। यूपी कांग्रेस के लिए परिणाम निराशाजनक हैं। अपनी जिम्मेदारी को सफल तरीके से नहीं निभा पाने के लिए खुद को दोषी पाता हूं। नेतृत्व से मिलकर अपनी बात रखूंगा।”
गौरतलब है कि सिनेमा जगत से राजनीति में आए राज बब्बर 1989 में वीपी सिंह के नेतृत्व वाले जनता दल से जुड़े। बाद में वह जनता दल छोड़कर समाजवादी पार्टी में चले गए। 2006 में उन्हें समाजवादी पार्टी से बर्खास्त कर दिया गया। इसके बाद 2008 में वह कांग्रेस पार्टी का हिस्सा बन गए।
बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में देश के अन्य राज्यों की तरह उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की लोकप्रियता में निरंतर इजाफा हो रहा है जबकि कांग्रेस, समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का मत प्रतिशत लगातार घट रहा है। केन्द्र में सरकार के गठन में अहम योगदान देने वाले इस राज्य में भाजपा और सहयोगी दलों ने गुरुवार को सम्पन्न 17वीं लोकसभा के चुनाव में 80 में से 64 सीटों पर कब्जा जमाया है। वहीं कांग्रेस को एक, सपा को पांच तथा बसपा को 10 सीटों पर संतोष करना पड़ा।
मोदी की अगुवाई वाली भाजपा को केन्द्र में दोबारा आने से रोकने के लिए विचारधारा से समझौता करने वाली सपा-बसपा की दोस्ती भी लोगों को रास नहीं आई, जिसके चलते सपा की कुल मत प्रतिशत में भागीदारी जहां साढ़े चार फीसदी कम हुई। वहीं, बसपा को भी करीब ढाई प्रतिशत का नुकसान हुआ। वर्ष 2014 में बसपा की हिस्सेदारी 22 फीसदी थी जो इस बार घटकर 19.26 प्रतिशत रह गयी। इसी तरह सपा 22.3 प्रतिशत से लुढ़क कर 17.96 फीसदी पर टिक गई। मत प्रतिशत की हिस्सेदारी का यह अंतर 2012 के विधानसभा चुनाव से लगातार दिख रहा है। सपा,बसपा और कांग्रेस का ग्राफ जहां लगातार नीचे खिसक रहा है वहीं भाजपा मतदाताओं के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही है।