मोदी फैक्टर, सपा-बसपा का साथ या कांग्रेस करेगी कारनामा: आखिरी चरण की वोटिंग में गड्डमड्ड हुआ यूपी का गणित

दिल्ली 
लोकसभा चुनाव 2019 का जंग आखिरी दौर में पहुंच गया है. एक बार फिर से सभी की निगाहें उत्तर प्रदेश पर टिकी हैं. यहां रविवार को 13 सीटों पर वोटिंग होनी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वाराणसी से जीत लगभग पक्की दिख रही है, लेकिन बाक़ी सीटों पर यहां एसपी-बीएसपी गठबंधन और बीजेपी के बीच कांटे की टक्कर हो सकती है. इसके अलावा यहां से कांग्रेस ने भी अगड़ी जाति के उम्मीदवारों को मैदान में उतार कर मुकाबले को और भी दिलचस्प बना दिया है.

चुनाव का आखिरी दौर बीजेपी के लिए सत्ता में बने रहने के लिए बेहद अहम है. 19 मई को जिन 13 सीटों पर वोटिंग होगी उन सभी पर बीजेपी को साल 2014 में जीत मिली थी. पूर्वी उत्तर प्रदेश में 12 मई को 14 सीटों पर वोटिंग हुई थी. पिछली बार यानी 2014 में बीजेपी को इन 14 में से 12 सीटों पर जीत मिली थी, लेकिन इस बार एसपी-बीएसपी-आरएलडी गठबंधन से बीजेपी को जोरदार टक्टर मिल रही है.

आखिरी दौर में यहां वाराणसी के अलावा हर किसी की निगाहें गोरखपुर, चंदौली और गाजीपुर की सीटों पर टिकी रहेंगी. गोरखपुर योगी आदित्यनाथ का गढ़ रहा है, लेकिन इस बार यहां से बीजेपी ने अभिनेता रवि किशन को मैदान में उतारा है. चंदौली से बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडे मौजूदा सांसद हैं. जबकि गाज़ीपुर की सीट पर फिलहाल केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा का कब्जा है.

इसके अलावा आखिरी दौर में महराजगंज, कुशीनगर, देवरिया, सलेमपुर, मिर्जापुर, बासेगांव और रॉबर्ट्सगंज में भी वोट डाले जाएंगे. बासेगांव और रॉबट्सगंज ये दो सीटें आरक्षित हैं. मिर्जापुर से केंद्रीय मंत्री और अपना दल की उम्मीदवार अनुप्रिया पटेल मैदान में हैं.

मौजूदा राजनीतिक समीकरण और पिछले नतीजों की समीक्षा की जाए तो इस बार बीजेपी के लिए रास्ते आसान नहीं हैं. पिछले चुनाव में इन इलाकों में मोदी की लहर चली थी. इस बार बीजेपी की नज़र जातिगत समीकरण और यहां केंद्र और राज्य सरकार द्वारा किए गए विकास कामों पर भी है.

इन क्षेत्रों में एसपी-बीएसपी गठबंधन की नजर भी जतिगत समीकरण पर है. बीजेपी को उम्मीद है कि अपर कास्ट के वोट तो उन्हें मिलेंगे ही साथ ही उनकी निगाहें गैर-यादव ओबीसी और गैर जाटव दलित वोटों पर भी है. ये वो इलाका है जहां अति पिछड़ा वर्ग और कई गैर जाटव दलित वोट काफी अहम है. ये दोनों किसी की भी जीत में अहम रोल निभा सकते हैं.

साल 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में ज़्यादातर ओबीसी और दलित ने बीजेपी को वोट दिया था. मसलन निशाद और राजभर बीजेपी के साथ थे. लेकिन सवाल उठता है कि क्या इस बार ये लोग बीजेपी को वोट देंगे या फिर गठबंधन को.

साल 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में ज़्यादातर ओबीसी और दलित ने बीजेपी को वोट दिया था. मसलन निशाद और राजभर बीजेपी के साथ थे. लेकिन सवाल उठता है कि क्या इस बार ये लोग बीजेपी को वोट देंगे या फिर गठबंधन को.

बनारस में पीएम मोदी की जीत पक्की लग रही है. बस ये हो सकता है कि इस बार उनके वोट शेयर में थोड़ी कमी आ जाए. साल 2014 में मोदी को 56.37 फीसदी वोट मिले थे. जबकि दूसरे नंबर पर रहने वाले अरविंद केजरीवाल के खाते में सिर्फ 20.30 फीसदी वोट आए थे. कांग्रेस के अजय राय को सिर्फ 7.34 फीसदी लोगों ने वोट दिया था.

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