मिशन चंद्रयान-2: सोमवार तड़के 2:51 बजे होगा लॉन्च, तैयारियां पूरी

नई दिल्ली
भारत सोमवार को अपने महत्वाकांक्षी स्पेश मिशन चन्द्रयान-2 को लॉन्च करने जा रहा है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के चेयरमैन डॉक्टर के. सिवन ने शनिवार को बताया कि हम 15 जुलाई को तड़के 2:51 बजे अपने सबसे प्रतिष्ठित मिशन चन्द्रयान-2 को लॉन्च करने जा रहे हैं। इस मिशन के लिए भारत के सबसे ताकतवर रॉकेट GSLV MK-3 का इस्तेमाल होगा। सफल लॉन्चिंग के बाद चांद के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-2 के लैंड करने में करीब 2 महीने का वक्त लगेगा। मिशन सफल रहा तो चंद्रयान-2 के 6 सितंबर को चांद की सतह पर उतरने की संभावना है।

इस बार चांद की सतह पर उतरेगा चंद्रयान
चंद्रयान-2 मिशन की खास बात यह है कि इस बार यह चांद की सतह पर उतरेगा। 2008 में लॉन्च हुआ चंद्रयान-1 चंद्रमा की कक्षा में गया जरूर था लेकिन वह चंद्रमा पर उतरा नहीं था। उसे चांद की सतह से 100 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित कक्षा में स्थापित किया गया था।

कुल लागत 978 करोड़ रुपये
चंद्रयान-2 मिशन पर कुल 978 करोड़ रुपये की लागत आई है। करीब एक दशक पहले चंद्रयान-1 ने चांद की सतह पर पानी की खोज की थी, जो बड़ी उपलब्धि थी। यही वजह है कि भारत ने दूसरे मून मिशन की तैयारी की। चंद्रयान-2 चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा जहां उम्मीद है कि बहुतायत में पानी मौजूद हो सकता है।

हिलियम-3 गैस की भी संभावना तलाशेगा
चंद्रयान-2 मिशन के तहत चांद की सतह पर एक रोवर को उतारा जाएगा जो अत्याधुनिक उपकरणों से लैस होगा। रोवर चांद की मिट्टी का विश्लेषण करेगा और उसमें मिनरल्स के साथ-साथ हिलियम-3 गैस की संभावना तलाशेगा, जो भविष्य में ऊर्जा का संभावित स्रोत हो सकता है।
 

कुल 14 पेलोड
चंद्रयान-2 पर कुल 14 पेलोड होंगे, जिनमें 13 भारतीय और एक NASA का पेलोड है। ऑर्बिटर पर 8, लैंडर पर 4 और रोवर पर 2 पेलोड होंगे। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA का इकलौता पेलोड लैंडर पर होगा।

चंद्रयान-2 के हिस्से और उपकरण
चंद्रयान-2 के 3 हिस्से हैं- ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर। इनका कुल वजन 3.8 टन है। ऑर्बिटर वह हिस्सा होता है, जो संबंधित ग्रह/उपग्रह की कक्षा में स्थापित होता है और जो उसका परिक्रम करता है। किसी स्पेस मिशन में लैंडर वह हिस्सा होता है जो रोवर को संबंधित ग्रह/उपग्रह की सतह पर उतारता है। रोवर का काम सतह पर मौजूद तत्वों का अध्ययन करना है।

ऑर्बिटर: ऑर्बिटर का वजन 3500 किलो और लंबाई 2.5 मीटर है। यह चांद की सतह से 100 किलोमीटर की ऊंचाई पर उसकी परिक्रमा करेगा। यह अपने साथ 8 पेलोड लेकर जाएगा। ऑर्बिटर और लैंडर धरती से सीधे संपर्क करेंगे लेकिन रोवर सीधे संवाद नहीं कर पाएगा।

लैंडर: लैंडर का नाम रखा गया है विक्रम। इसका वजन 1400 किलो और लंबाई 3.5 मीटर है। इसमें 3 पेलोड (वजन) होंगे। इसका काम चंद्रमा पर उतरकर रोवर को रिलीज करना होगा।

रोवर: इसका नाम है प्रज्ञान, जिसका मतलब है बुद्धि। इसका वजन 27 किलो होगा और लंबाई 1 मीटर। इसमें 2 पेलोड होंगे। यह सोलर एनर्जी से चलेगा और अपने 6 पहियों की मदद से चांद की सतह पर घूम-घूम कर मिट्टी और चट्टानों के नमूने जमा करेगा। यह 1 सेंटीमीटर/सेकंड की रफ्तार से चलेगा और कुल 500 मीटर कवर करेगा। इससे चांद की सतह के तत्वों का अध्ययन हो सकेगा।

कब तक चलेगा मिशन?
15 जुलाई को लॉन्चिंग के बाद 6 सितंबर को चंद्रयान के चांद की सतह पर उतरने की उम्मीद है। वहां लैंडर और रोवर 14 दिनों तक ऐक्टिव रहेंगे। ऑर्बिटर 1 साल तक ऐक्टिव रहेगा और चांद की कक्षा में चक्कर लगाता रहेगा।

ऐसे होगी लैंडिंग
लॉन्च के बाद धरती की कक्षा से निकलकर चंद्रयान-2 रॉकेट से अलग हो जाएगा। रॉकेट अंतरिक्ष में नष्ट हो जाएगा और चंद्रयान-2 चांद की कक्षा में पहुंचेगा। इसके बाद लैंडर ऑर्बिटर से अलग हो जाएगा। ऑर्बिटर चंद्रमा की कक्षा का चक्कर लगाना शुरू कर देगा। उसके बाद लैंडर चंद्रमा के दक्षिणी हिस्से पर उतरेगा। यान को उतरने में लगभग 15 मिनट लगेंगे और तकनीकी रूप से यह लम्हा बहुत मुश्किल और चुनौतीपूर्ण होगा क्योंकि भारत ने पहले कभी ऐसा नहीं किया है। लैंडिंग के बाद लैंडर का का दरवाजा खुलेगा और वह रोवर को रिलीज करेगा। रोवर के निकलने में करीब 4 घंटे का समय लगेगा। फिर यह वैज्ञानिक परीक्षणों के लिए चांद की सतह पर निकल जाएगा। इसके 15 मिनट के अंदर ही इसरो को लैंडिंग की तस्वीरें मिलनी शुरू हो जाएंगी।

मिशन का उद्देश्य
चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर पानी के प्रसार और मात्रा का निर्धारण
चंद्रमा के मौसम, खनिजों और उसकी सतह पर फैले रासायनिक तत्‍वों का अध्‍ययन
चांद की सतह की मिट्टी के तत्वों का अध्ययन
हिलियम-3 गैस की संभावना तलाशेगा जो भविष्य में ऊर्जा का बड़ा स्रोत हो सकता है

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