ब्रेग्जिट से संकट में ब्रिटेन, गिर सकती है थेरेसा सरकार

लंदन 
ब्रिटेन और यूरोपीय संघ (ईयू) के रिश्तों के लिए फैसले की घड़ी आ गई है. ईयू से अलग होने की कवायद में ब्रिटेन की संसद में प्रधानमंत्री थेरेसा मे के प्रस्ताव पर बहस और वोटिंग होनी है. थेरेसा मे का प्रस्ताव सदन में पारित होता है तो 29 मार्च को ब्रिटेन आधिकारिक तौर पर संघ से बाहर निकल जाएगा. लेकिन प्रधानमंत्री का प्रस्ताव विफल हुआ तो उसके सामने बेहद कड़ी राजनीतिक चुनौती होगी जहां थेरेसा मे की सरकार गिरने से लेकर एक बार फिर नए सिरे से ईयू से बाहर निकलने की कवायद शुरू करनी होगी.

फैसले की इस घड़ी में प्रधानमंत्री थेरेसा मे को डर है कि संसद में विपक्ष के साथ-साथ उनकी पार्टी के सदस्य उनका साथ छोड़ सकते हैं. इस डर के चलते मे ने बीते रविवार पार्टी के सांसदों को चेतावनी देते हुए कहा था कि ब्रैक्जिट मामले में विफल होना 'लोकतंत्र के प्रति भरोसे का अनर्थकारी व अक्षम्य उल्लंघन होगा.'

प्रधानमंत्री मे के इस डर का अंदाजा इसी से लगता है कि उन्होंने देश के एक प्रमुख अखबार में लेख लिखते हुए अपने सांसदों से प्रस्ताव पर समर्थन की अपील की थी. मे ने अपने लेख में कहा है कि ब्रेक्जिट से संबंधित उनके प्रस्ताव पर संसद के निचले सदन में वोट डालना मौजूदा पीढ़ी का सबसे अहम फैसला होगा.

दरअसल प्रधानमंत्री मे को निचले सदन (हाउस ऑफ कॉमन्स) में इस प्रस्ताव को जीतना बेहद जरूरी है क्योंकि यहां हार का सामना करने पर उन्हें सत्ता गंवाने के डर के साथ-साथ ईयू से अलग होने के लिए नए सिरे से कवायद करनी होगी. आर्थिक जानकारों का मानना है कि यदि ब्रिटेन को बिना किसी समझौते के ईयू से बाहर निकलना पड़ा तो उसकी अर्थव्यवस्था को कभी न भरपाई होने वाली छति पहुंचने का डर है.

गौरतलब है कि हार के डर से प्रधानमंत्री मे ने पिछले महीने संसद के निचले सदन में इस प्रस्ताव पर होने वाली वोटिंग को टाल दिया था. आज होने वाली इस मीटिंग में मे को विपक्ष और छोटे राजनीतिक दलों के साथ-साथ अपनी पार्टी के अधिकांश सांसदों के वोट को साधने की चुनौती है.

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