बैल नहीं बालक हुआ करते थे नंदी, जानें कैसे बने शिव के प्रिय

भगवान शिव शायद ही अपनी किसी तस्वीर या मूर्ति में बैल के बिना नजर आए होंगे। ये बैल नंदी के नाम से जाना जाता है। नंदी भगवान शिव के सामने अपने पैर मोड़कर बैठे दिखाई देते हैं। बैलों को अच्छी नियत और निष्ठा का प्रतीक माना जाता है। बैल, बुद्धिमान, समझदार और परिश्रम करने वाले होते हैं। शांत रहने वाला बैल गुस्सा हो जाने पर शेर से भी भिड़ सकता है। इन्हीं सब गुणों को ध्यान में रखते हुए भगवान शिव ने नंदी बैल को अपनी सवारी के लिए चुना।

नंदी के बाद से सभी बैल पूजनीय और भगवान शिव से जुड़े हुए माने जाने लगे। मगर ये सब हुआ कैसे? इस लेख की मदद से जानते हैं नंदी के जन्म से जुड़ी कथा और कैसे वो बने भगवान शिवजी के वाहन।

भगवान शिव की कृपा से हुआ था नंदी का जन्म
वायु पुराण में मौजूद कथा के अनुसार ऋषि कश्यप की कोई संतान नहीं थी। वो और उनकी पत्नी सुरभि इस बात से चिंतित थे और एक संतान चाहते थे जो परिवार के नाम को आगे बढ़ा सके। लगातार भगवान शिव के लिए तप करने के बाद ऋषि कश्यप और सुरभि को पुत्र की प्राप्ति हुई। बेटे के आ जाने से उनके जीवन में खुशियां लौट आयी। इस वजह से उन्होंने अपने पुत्र का नाम नंदी रखा जिसका अर्थ ही होता है उल्लास और ख़ुशी।

भगवान वरुण और मित्र मिले ऋषि शिलाद से
कुछ दूसरी पुस्तकों के मुताबिक, एक बार ऋषि शिलाद ने इंद्र देवता से अमर और मजबूत संतान की इच्छा जताई थी। तब इंद्र ने उन्हें भगवान शिव का आशीर्वाद लेने की सलाह दी। भोलेनाथ की कृपा से ऋषि शिलाद को मैदान में एक बच्चा मिला जिसे उन्होंने गोद ले लिया।

शिलाद की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान वरुण और मित्र उनसे मिलने पहुंचे। उन दोनों ने शिलाद को लंबी आयु का वरदान दिया और साथ ही उन्होंने बताया कि उनका पुत्र नंदी 8 साल की उम्र में मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा। उस समय नंदी की उम्र 7 बरस की थी।

नंदी ने शुरू की भगवान शिव के लिए तपस्या
जब नंदी को इस बारे में पता चला तब वो अपने पिता के दुःख को बर्दाश्त नहीं कर पाएं और तब उन्होंने अपनी भक्ति से भगवान शिव को प्रसन्न करने का निर्णय लिया। भगवान ने इस बालक की प्रार्थना सुनी और उसे दर्शन भी दिए और साथ ही तोहफे में घंटियों की एक माला दी। शिवजी ने कम आयु में मृत्यु के श्राप को खत्म किया और साथ ही नंदी को बताया कि अब वो आधा मनुष्य और आधा बैल वाले शरीर के साथ जीवन बिताएंगे।

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