बीच में रुका था CRPF काफिला, 2 गाड़ियों में आई तकनीकी खराबी तो दूसरी गाड़ियों में शिफ्ट किए गए जवान

 
श्रीनगर 

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में CRPF (केंद्रीय रिजर्व सुरक्षा बल) काफिले पर हुए हमले के बाद उससे जुड़ी अहम जानकारियां सामने आ रही हैं। ताजा जानकारी के मुताबिक, उस काफिले की दो गाड़ियों में तकनीकी खराबी हो गई थी। उसके बाद उन गाड़ियों में सवार जवानों को दूसरी बसों में बैठाया गया। बाद में काफिले पर आत्मघाती हमला हो गया। बता दें कि 14 फरवरी को हुए हमले में CRPF के 40 जवान शहीद हुए थे। 

काफिले में जवानों समेत 2,547 लोग 
CRPF के मुताबिक, 78 गाड़ियों के काफिले की 14 बसें काजीगुंड के एक ट्रांजिट कैंप पर रुकी थीं। उनके अलावा दो गाड़ियों में पुलवामा से 25 किलोमीटर दूर पर खराबी आ गई थी। इसके बाद जवानों को दूसरी गाड़ियों में शिफ्ट किया गया। CRPF के आधिकारिक नोट में घटनाक्रम का विवरण दिया गया है। उसमें बताया गया है कि काफिले में 2,547 लोग थे, जिनमें ड्राइवर और 309 एस्कॉर्ट भी शामिल थे। एस्कॉर्ट का नेतृत्व 180 बटैलियन के असिस्टेंट कमांडेंट मनोज कुमार रहे थे। वे लोग सुबह 3:30 से जम्मू से श्रीनगर गए। 

काजीगुंड में रुकीं 16 गाड़ियां, 16 और शामिल हुईं 
करीब दोपहर 2.15 बजे काफिला काजीगुंड पहुंचा। वहां 14 गाड़ियां रुकीं और दो अन्य गाड़ियों में तकनीकी खराबी हो गई। हालांकि, यह नहीं बताया गया है कि खराब गाड़ियों के साथ बाकी 14 गाड़ियां क्यों रुकी थीं। इसके बाद काफिले में 16 बुलेटप्रूफ गाड़ियां भी शामिल हो गईं। इंटेलिजेंस अधिकारियों का मानना है कि हमलावर ने काफिले की पांचवीं बस और उसके आगे चल रहीं कम से कम 4 गाड़ियों को पहचान लिया था। इन गाड़ियों में सीनियर अधिकारी जा रहे थे। 
  
पुलवामा शहीदों की अंतिम यात्रा.. आंखों में आंसू, दिल में अंगारे, नमन में झुके सिर
पुलवामा में देश के 40 सपूतों ने अपनी जान गंवा दी। आतंकियों के नापाक मंसूबे भले ही इस बार कामयाब हो गए हों, देशवासियों का फूटा आक्रोश उनसे हिसाब लेने को तैयार है। जब उन जवानों के पार्थिव शरीर अपनी-अपनी मिट्टी को लौटे तो आंखें भले ही नम थीं, दिल में अंगारे भी धधक रहे थे। नमन में झुके हर सिर ने प्रण किया है कि जवानों की शहादत बेकार नहीं जाएगी। अंतिम यात्रा में लहराते तिरंगे भी इसी वादे के साथ जवानों को गर्व से सम्मानित करते नजर आए।

हमले में उत्तर प्रदेश के कन्नौज निवासी प्रदीप सिंह यादव शहीद हो गए थे। प्रदीप सिंह को कोई बेटा नहीं है, इसलिए रिश्तेदारों ने पूछा कि शहीद की चिता को मुखाग्नि कौन देगा? इस पर प्रदीप की बेटी आगे आई और उसने पिता की चिता को मुखाग्नि दी। पिता को हमेशा के लिए अपने से दूर जाता देख बेटी बेसुध होकर वहीं पर गिर पड़ी।

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