बड़े भूकंपों को लेकर तैयार नहीं हिमालय क्षेत्र, भारत ने पिछली गलतियों से नहीं सीखा: वैज्ञानिक साइंस

वैज्ञानिकों का कहना है कि हिमालय क्षेत्र में 8.5 या उससे अधिक तीव्रता का भूकंप भविष्य में कभी भी आ सकता है लेकिन भारत ने पिछली गलतियों से नहीं सीखा है और वह ऐसी किसी भी आकस्मिक स्थिति से निपटने की तैयारी से अब भी दूर है तथा जान-माल की क्षति को न्यूनतम करने की कोई रणनीति नहीं है। यहां पिछले हफ्ते एक वैश्विक कार्यशाला के लिए एकत्र हुए देशभर के वैज्ञानिकों ने कहा कि सरकार को भूकंप संबंधी सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए। 

यहां भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान में 18-20 अप्रैल को आयोजित 'हिमालय में जलवायु परिवर्तन एवं अतिशय घटनाएं' विषयक अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला का लक्ष्य हिमालयी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन, हिमनदों के पिघलने, अतिशय घटनाओं की बारंबारता में वृद्धि, वायुमंडलीय प्रदूषण तथा फसल अवशेष के जलाने के प्रभावों तथा दूर संवेदी के अनुप्रयोगों को समझना था। विभिन्न क्षेत्रों के वैज्ञानिक इस बात पर सहमत थे कि हिमालयी क्षेत्र में 8.5 या उससे अधिक तीव्रता का भूकंप आ सकता है।

इस कार्यशाला में जिन विविध विषयों पर चर्चा हुई, उनमें से एक यह था कि हिमालयी क्षेत्र में किसी बड़ी आपदा आने पर जान-माल का नुकसान कम करने की तैयारी नहीं है। आईआईटी रूड़की समेत कई अनुसंधान समूह भूकंप की पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित करने में जुटे हैं ताकि लोगों को भूकंप आने से कुछ समय पहले उसके बारे में चेतावनी दी जा सके।

भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान के डॉ सुप्रियो मित्रा ने पीटीआई भाषा से कहा, 'मैं ऐसे समाज को तरजीह दूंगा जिसने तैयारी कर रखी है।' उन्होंन कहा कि यदि भूगर्भ विज्ञानी लोगों को समयपूर्व चेतावनी दे देते हैं और लोग भूकंप आने से पहले अपने घरों से बाहर आ जाते हैं तो भी हमारे मकान तो नष्ट होंगे ही, पूरा समाज शरणार्थी बन जाएगा।

उन्होंने कहा, 'हमारे पास इस बात की विशेषज्ञता है कि खतरे क्या हैं। अभियंता ढांचों की भेद्यता का पता लगा सकते हैं और आपको वह तरीका बता सकते हैं जिससे उन्हें प्रतिरोधक बनाया जा सके।' आईआईटी कानपुर के डॉ दुर्गेश सी राय ने कहा कि भूकंप संबंधी सुरक्षा हर नागरिक का अधिकार होना चाहिए और सरकार को यह सुनिश्चित करनी चाहिए। 

राय ने कहा कि लातूर में 1993 में भूकंप से 9000 से अधिक लोग मर गए थे और सरकारी एजेंसियों एवं विद्वानों की राय थी कि मकान कच्चे थे। उन्होंने कहा, 'ऐसे में लोगों की मौत को उनकी गरीबी से जोड़कर देखा गया।' उन्होंने कहा, '2001 में जब भुज में भूकंप आया तब अहमदाबाद में 120 बहुमंजिली इमारतें ढह गयीं और 900 लोग मर गए। ये सारे इंजीनियरीकृत ढांचे थे। जांच में सामने आया कि भवन निर्माण नियमावली का उल्लंघन हुआ था।

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