नवजात भी होते हैं हीट स्ट्रोक के शिकार, जानें इसके बचाव

मई का महीना अपने अंतिम चरण पर है और जून की शुरुआत होने वाली है। ऐसे में चिलचिलाती गर्मी से सबके हाल बेहाल हो चुके हैं। इस गर्मी में हीटस्‍ट्रोक होने की सम्‍भावना ज्‍यादा रहती है। न सिर्फ बड़ों को बल्कि नवजात शिशुओं को भी हीटस्‍ट्रोक होने की सम्‍भावना अधिक होती है। दरअसल गर्मी में बढ़ता तापमान नवजात शिशु या दूधमुंहे शिशु का नाजुक शरीर झेल नहीं पाता है। पानी की कमी के कारण वो हीट स्ट्रोक के शिकार हो जाते हैं। ऐसे समय में मां को कुछ विशेष सावधानी बरतनी चाहिए।

नवजात शिशु का बॉयालोजिकल सिस्टम इतना विकसित हो रहा होता है। हाई टेंपरेचर न केवल आंतरिक बल्कि बाह्य रूप से भी आपके बच्चे पर गंभीर प्रभाव डालता है।

ऐसे पहचाने हीट स्ट्रोक के लक्षण

सिर्फ मां ही है जो नवजात शिशु के हीट स्‍ट्रोक को पहचान सकती है। ये है नवजात में हीट स्‍ट्रोक के सामान्य लक्षण हैं। इन लक्षणों को पहचान माएं समय रहते इलाज कर सकती है।

इन संकेतों से पहचाने

शिशु के होंठ सूखने लगेंगे।
शरीर में पानी की कमी के कारण उसका शरीर अकड़ने लगता है।
शिशु निढाल, थका सा नजर आएगा।
शिशु का बॉडी टेंपरेचर 102 डिग्री फेहरनहाइट से कम भी हो सकता है। उसकी त्वचा ठंडी और नम होने लगा सकती है।
शिशु के पेट में मरोड़ हो सकती है और वह अपनी टांगे बार-बार मोड़ने लग सकता है।

यदि हीट स्ट्रोक की स्थिति बिगड़ने में दिखते हैं ये गंभीर लक्षण

103 डिग्री फेहरनहाइट या इससे अधिक बुखार होना।
स्किन पर अचानक से लाल, शुष्क और गर्म हो जाना।
शिशु की धड़कनें तेज चलने लगना।
शिशु में बेचैनी, सांस फूला आदि।
शिशु में मूर्छा सा नजर आना।
उल्टी

शिशु को हीट स्ट्रोक से बचाने के तरीके

– शिशु अगर छह महीने से छोटा है तो तुरंत उसे फीड कराना शुरू करें। यदि छह महीने से बढ़ा है तो नींबू नमक चीनी का घोल पिलाना शुरु करें।
– जल्दी से जल्दी शिशु के शरीर के तापमान को नीचे लाने के लिए उसे ठंडी और खुली जगह में ले जाएं। ताकि वह बेहोश न होने पाए। यदि घर पर हैं तो उसके कपड़े को उतार दें और ठंडे कमरे में लिटाएं। हीट स्ट्रोक के दौरान बच्चे को गोद में रखें या बिस्तर पर। उसे गर्मी नहीं लगें। प्रैम, कार सीट, पालने, झूले, या बेबी कैरियर में बिलकुल न रखें।
– याद रखें हीट स्ट्रोक को होने देने से रोकना ही इसका इलाज है। हीट स्ट्रोक होने पर उसका समय पर लक्षण पहचनान भी जरूरी है ताकि समय पर इलाज किया जा सके।

 

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