नवंबर 2020 तक NDA को मिल जाएगा राज्यसभा में पूर्ण बहुमत

भोपाल 
लोकसभा चुनाव जीतने के बाद भारतीय जनता पार्टी का अगला मिशन राज्यसभा में बहुमत पाने का है. भाजपा और उसके नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन संसद के ऊपरी सदन राज्यसभा में अल्पमत की स्थिति से उबरने की कोशिश कर रहा है, जिसने पिछली एनडीए सरकार के कुछ विधेयकों को राज्यसभा से पास होने में बाधा उत्पन्न की.

राज्यसभा में पूर्ण बहुमत से एनडीए को विधि निर्माण करने में अपेक्षाकृत आसानी होगी, जो पिछले कई सालों से कानून बनाने के मामले में एनडीए के लिए बड़ी बाधा बना हुआ है. ट्रिपल तलाक, मोटर वेहिकल एक्ट और सिटीजनशिप एक्ट में सुधार जैसे अहम बिल राज्यसभा में एनडीए के बहुमत न होने के कारण पास नहीं हो सके हैं.

लोकसभा के सदस्यों की तरह राज्यसभा के सांसदों का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से वोटरों के द्वारा नहीं किया जाता है, बल्कि उनका निर्वाचन राज्यों की विधानसभाओं और विधानमंडलों के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा किया जाता है. जिस पार्टी के पास जितने अधिक विधायक होंगे, वह उतने ही अधिक सांसदों को राज्यसभा में भेज सकती है. राज्यसभा सांसद का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है, जबकि निचले सदन लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है. सबसे अहम बात यह है कि राज्यसभा के सभी सदस्य एक साथ नहीं चुने जाते हैं, जैसे लोकसभा में चुने जाते हैं.

पिछले साल, स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस को पीछे छोड़कर राज्यसभा में सबसे बड़ी पार्टी बन गई. 245 सीटों वाले उच्च सदन में एनडीए के सांसदों की संख्या 101 है. कांग्रेस नीत यूपीए के राज्यसभा में 66 और अन्य दलों के भी कुल 66 सांसद राज्यसभा में हैं.

एनडीए को स्वप्न दासगुप्ता, मैरी कॉम व नरेंद्र जाधव और 3 स्वतंत्र सांसदों का भी समर्थन प्राप्त है. 2020 की शुरुआत में यूपीए द्वारा मनोनीत केटीएस तुलसी रिटायर हो जाएंगे, तो एनडीए को उनकी जगह अपनी पसंद के एक सांसद को मनोनीत करने का भी अवसर मिल जाएगा.

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