नक्सल हिंसा में जला दिए थे इनके घर, 13 साल बाद अपनी जमीन को प्रणाम कर की वापसी
बस्तर
साल 2006 में नक्सल हिंसा से पीड़ित छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के घोर नक्सल प्रभावित सुकमा जिले के मरईगुड़ा गांव के 25 परिवार आन्ध्र प्रदेश में पलायन कर गए थे. 13 साल बाद गुरुवार को वो 25 आदिवासी परिवार अपने गांव लौटे तो ग्रामीण काफी उत्साहित थे. यहां पर उनके घरों में आग लगा दी गई थी, लेकिन अब फिर से अपने घर बनाऐंगे और अपने गांव में रहेंगे. क्योंकि आन्ध्र प्रदेश में उन्हें किसी भी योजना का लाभ नहीं मिल रहा था. यहां पर उनके खेत और जमीन है.
मिनी बस में सवार होकर आन्ध्र प्रदेश के कनापुरम में रह रहे 25 परिवार आज 13 साल के बाद अपने गांव लौटे हैं. 2006 में जब बस्तर सलवा जुडूम तेजी से सक्रिय था. तब नक्सलियों ने मरईगुड़ा गांव और आसपास के इलाको में हिंसा फैल दी थी. सलवा जुडूम और नक्सल हिंसा के बीच आदिवासी पीस रहे थे. उस वक्त कुछ अज्ञात लोग दोपहर को मरईगुड़ा गांव पहुंचे. यहा के घरों में आग लगा दी और देखते ही देखते पूरे घर जलकर खाख हो गए. कुछ ने कहा नक्सलियों ने हिंसा की घटना को अंजाम दिया तो कुछ ने सलवा जुडूम से जुड़े लोगों पर आरोप लगाए.
अपनी जान बचाने के लिए ग्रामीण जंगलों में चले गए उसके बाद आन्ध्र प्रदेश के भद्राचलम के पास कनापुरम गांव में विस्थापित हो गए, लेकिन यहां भी उन्हें काई सुविधा नहीं मिल रही थी. आज 25 परिवार वापस अपने घर लौटे. कई ऐसे बच्चे हैं जो अपने गांव पहली बार आ रहे हैं. महिलाए व पुरुषों के आंखों में खुशी साफ तौर पर देखी जा रही थी. गांव से पहले सभी ग्रामीणों ने बस से उतर कर अपने गांव की सरहद को नमन किया फिर गांव में प्रवेश किया.
ग्रामीणों ने बताया कि आन्ध्र प्रदेश में पनाह जरूर मिल गई थी, लेकिन सुविधा कुछ भी नहीं थी. वहां पर सिर्फ र्मिच तोड़ने का काम था. जिससे गुजारा मुश्किल से होता था. जब शांति पदयात्रा निकाली गई उस वक्त शुभ्रांशु चैधरी के सर्पक में ग्रामीण आए और वापस गांव आने की इच्छा जताई. उसके बाद लगातार प्रयास कर 25 परिवार अपने गांव लौटे हैं.
समाजिक कार्यकर्ता शुभ्रांशु चैधरी कहते हैं ग्रामीणों ने वापस आकर काफी हिम्मत दिखाई, लेकिन इन्हें मदद की जरूरत है. पदयात्रा के दौरान मेरे से ग्रामीणों ने संर्पक किया था. उसके बाद लगातार प्रयास करने के बाद ये ग्रामीण वापस गांव आने के लिए तैयार हुए. हम सभी पक्षों से अनुरोध कर करते हैं कि इन्हें शांति से अपने घर रहने दें और भी ऐसे कई परिवार है जो दर-दर भटक रहे है उन्हे वापस लाने का प्रयास करें.
13 साल बाद लौटे ग्रामीण तारम एन्का कहते हैं कि आन्ध्र प्रदेश के कनापुरम में रहता था वहां पर खेती नहीं थी दिनभर मजदूरी करते थे. वापस अपने गांव जाने पर खुशी हुई है. गांव में रह रहे लोगों ने वापस आने की बात हमें कही थी. हमें मदद की जरूरत है.
इन्हीं परिवारों में शामिल एक परिवार के सदस्य माड़वी गंगा का कहना है कि 2006 में हमारे घर जला दिए गए थे. उस समय हम लोग आन्ध्र प्रदेश चले गए थे, लेकिन वहां भी जमीन नहीं मिली है. इसलिए हम लोग वापस अपने घर लौटे हैं और भी कई ऐसे परिवार है जो वापस आना चाहते है.