नक्सलियों के प्रेशर माइंस का तोड़ निकालेगी बिहार पुलिस

पटना
सुरक्षाबलों के खिलाफ नक्सलियों के नए हथियार प्रेशर माइंस का तोड़ निकालने में बिहार पुलिस जुट गई है। प्रेशर माइंस को ढूंढ निकालने और नष्ट करने में उसने केन्द्रीय एजेंसी से मदद का अनुरोध किया है। विस्फोटकों की पहचान और नष्ट करने में माहिर मानी जाने वाली नेशनल सिक्यूरिटी गार्ड (एनएसजी) ने सहायोग का आश्वासन दिया है। जल्द ही पुलिस को ट्रेनिंग देने पर बातचीत होगी।

बिहार के नक्सली लम्बे समय से विस्फोटकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। लैंडमाइंस उनका सबसे कारगर हथियार रहा है, पर गत कुछ महीनों से वे प्रेशर माइंस का इस्तेमाल करने लगे हैं। इसकी बड़ी वजह है कि नक्सलियों ने इसे बनाना सीख लिया है। साल 2017 में बिहार के कई नक्सली झारखंड और छत्तीसगढ़ की सीमा पर लम्बे समय तक रहे थे। इस दौरान उन्होंने प्रेशर माइंस बनाना सीखा था। पिछले वर्ष के आखिर में लौटने के बाद नक्सली इसपर काम करने लगे। नक्सलियों ने अपने प्रभाव वाले इलाकों में बड़ी संख्या में प्रेशर माइंस लगाया है। 3 मई को ही औरंगाबाद के लंगुराही में प्रेशर माइंस से कारू भुईयां नामक लकड़हारे की मौत हुई थी।

यह एक विस्फोटक है जो दबाव तकनीक पर आधारित होता है। प्रेशर माइंस बड़े और छोटे दोनों तरह के बनाए जाते हैं। इंसान को निशाना बनाने के लिए दो किलोग्राम के आसपास का वजन वाला माइंस इस्तेमाल होता है वहीं गाड़ियों को टारगेट करना है तो भारी-भरकम प्रेशर माइंस लगाए जाते हैं। धमाके के लिए दो तरकीब इस्तेमाल की जाती है। या तो वजन से यह ब्लास्ट करता या फिर वजन हटते ही इसमें धमाका होगा। यह विस्फोटक के सर्किट पर निर्भर करता है।

लैंडमाइंस के मुकाबले प्रेशर माइंस ज्यादा खतरनाक है। लैंडमाइंस को विस्फोट कराने के लिए तार का इस्तेमाल होता है। सर्किट पूरा करने के लिए डेटोनेटर को तार के जरिए पावर दी जाती है। इसके तोड़ के तौर पर सुरक्षाबल या तो एंटी लैंडमाइंस गाड़ियां का इस्तेमाल करते हैं या फिर नुकसान से बचने के लिए पैदल चलते हैं। पर प्रेशर माइंस से पैदल चलनेवालों को ही निशाना बनाया जाता है। दूसरे इसमें तार की भी जरूरत नहीं पड़ती। हल्का व छोटा होने के चलते आसानी से छुपाया और लगाया जा सकता है।

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