दस साल में 1700 पुलिसकर्मी नौकरी से तौबा!

नई दिल्ली
पिछले दिनों दिल्ली पुलिस में मोची, माली, धोबी, कुक, नाई, बढ़ई, वाटर कैरियर जैसे 707 पदों के लिए एमबीए, बीबीए, इंजिनियर जैसे युवाओं की भीड़ उमड़ पड़ी। लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू ये कि दिल्ली पुलिस में बहुत से नौकरी छोड़ने को बेताब हैं। वजह पुलिसकर्मी दिन-रात लगातार ड्यूटी का दबाव नहीं झेल पा रहे हैं। ऊपर से अफसरों की प्रताड़ना। परिवार की देखभाल न कर पाना। निजी दिक्कतों की वजह से मानसिक-शारीरक बीमारियों ने अपनी चपेट में ले लिया है। यही वजह है पिछले दस साल में हजार से अधिक पुलिसकर्मियों ने वीआरएस ले लिया। करीब 700 पुलिसकर्मी खुद ही नौकरी से इस्तीफा दे चुके हैं। यह खुलासा खुद दिल्ली पुलिस ने एक आरटीआई के जवाब में किया है।

आरटीआई ऐक्टिविस्ट जीशान हैदर ने सूचना अधिकार के तहत पिछले दिनों पूछा था कि दिल्ली पुलिस में कितने पुलिसकर्मियों ने 2010 से 2018 तक वीआरएस (स्वेच्छिक सेवानिवृत्ति स्कीम) लिया और कितनों ने नौकरी से इस्तीफा दिया। इनके पद और वर्ष वार ब्यौरा मांगा। पुलिस हेडक्वॉर्टर की तरफ से सिलसिले वार ब्यौरा देते हुए बताया गया कि 9 साल में 1060 पुलिस कर्मियों ने वीआरएस ले लिया और 625 ने इस्तीफा दे दिया। इस हिसाब से हर साल करीब 190 पुलिसवालों ने नौकरी छोड़ दी। अगर महीने वार कैल्क्युलेशन की जाए तो औसतन 16 लोगों का है। यानी हर दूसरे दिन एक जवान ने दिल्ली पुलिस की नौकरी छोड़ी।

आप सुनकर चौंक जाएंगे कि इनमें अधिकतर कांस्टेबल, हेड कांस्टेबल, एएसआई, एसआई, इंस्पेक्टर, एसीपी रैंक के अफसर हैं। ये लोग लंबे ड्यूटी ऑवर्स व मेंटली टॉर्चर से परेशान होकर वीआरएस लिया या इस्तीफा दिया। जो इस दबाव को झेल नहीं पा रहे वो सुसाइड जैसे कदम उठाने को मजबूर हो रहे हैं। कुछ पुलिसकर्मियों ने दबी जुबान में इसकी सबसे बड़ी वजह बताई लगातार ड्यूटी। ना ठीक से सोने, ना खाने पीने का समय। त्यौहार आने पर छुट्‌टी नहीं मिलती। होली, दशहरा, दीवाली, छठ जैसे बड़े पर्व पर भी वे परिवार से दूर रहकर ड्यूटी करते हैं। वहीं राष्ट्रीय पर्व जैसे 15 अगस्त, 26 जनवरी और चुनाव जैसे इवेंट पर उन्हें राउंड द क्लॉक काम करना पड़ता है।

पुलिस के आधिकारिक सूत्रों का यहां तक दावा है कि अभी भी वीआरएस के लिए पांच हजार फाइलें पेंडिंग पड़ी हुई हैं, जिन्हें रोका हुआ है। इस बारे में पुलिस अफसरों का कहना है कि वीआरएस लेने वाले या इस्तीफा देने वाले एप्लीकेशन में सीधे तौर पर मेंटली टॉर्चर या डिपार्टमेंटल वजहों का जिक्र नहीं करते क्योंकि ऐसा करने पर उनके आवेदन पर आसानी से मंजूरी नहीं मिलती। पिछले दिनों 28 नवंबर को पुलिस मुख्यालय की 10 वीं मंज़िल से एसीपी प्रेम बल्लभ ने संदिग्ध हालात में कूदकर आत्महत्या कर ली थी। इस मामले की तफ्तीश में भी यह सामने आ चुका है कि वे मेंटली टॉर्चर बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे, वीआरएस लेना चाहते थे। लेकिन ऐसा होने नहीं दिया गया।

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