…तो इस वजह से घूस लेने या देने के लिए तैयार हो जाते हैं लोग

वॉशिंगटन
भारत समेत कई देशों में की गई स्टडी में इस बात का खुलासा हुआ है कि लोगों की लालच और एहसान न लौटाने की इच्छा ही वह मुख्य वजह है जिस कारण से लोग घूस यानी रिश्वत देते या लेते हैं। अमेरिका के कार्नेगी मेलन यूनिवर्सिटी CMU के अनुसंधानकर्ताओं ने बताया कि जब incentives यानी प्रलोभन, चॉइस पर निर्भर होता है तो लोग घूस देते या फिर लेते हैं। वहीं दूसरी तरफ जब लोगों को पता होता है उनके घूस देने या लेने से सामने वाले के फैसले पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा तो वे रिश्वतखोरी नहीं करते।

90% ने वैसे जोक को चुना जिसके साथ सबसे ज्यादा पैसा आया
इस बात को साबित करने के लिए स्टडी में शामिल प्रतिभागियों को ओरिजिनल जोक लिखकर एक जज के पास सब्मिट करना था और उस जज को यह फैसला करना था कि इनमें से किसका जोक सबसे मजेदार और फनी था। इसके लिए जोक लिखने वाले 5 डॉलर तक की घूस दे सकते थे। जब जजों को पता था कि वे सिर्फ एक ही घूस ले सकते हैं तो करीब 90 प्रतिशत ने वैसे जोक को चुना जिसके साथ सबसे ज्यादा पैसा घूस के तौर पर दिया गया था और अच्छा जोक सिर्फ 60 प्रतिशत बार ही चुना गया।

घूस मिलने पर लोग क्वॉलिटी की जगह पैसे को ही चुनते हैं
CMU के असिस्टेंट प्रफेसर सिल्विया साकार्डो ने कहा, जब जजों के पास यह अधिकार था कि वे रिश्वत लेकर विजेता का फैसला कर सकते थे जब क्वॉलिटी को इग्नोर कर दिया गया और ज्यादातर लोगों ने क्वॉलिटी की जगह पैसे को चुना। वहीं जब जजों को पता था कि विजेता कौन होगा उसका फैसला उनके हाथ में नहीं था तब रिश्वत ने भी उनके फैसले पर कोई असर नहीं डाला और 84 प्रतिशत बार उन्होंने उस जोक को चुना जो सचमुच अच्छा और सबसे फनी था।

100 करोड़ डॉलर रिश्वत के तौर पर होता है एक्सचेंज
साकार्डो आगे कहते हैं, जब किसी तरह का निष्पक्ष निर्णय लेने से पहले ही आपके पास रिश्वत पहुंच जाती है तो व्यक्ति खुद को बड़ी आसानी से यह समझा लेता है कि लोअर स्टैंडर्ड का यह प्रपोजल ही उसके लिए बेस्ट है। लेकिन जब आप रिश्वत मिलने से पहले ही कोई फैसला कर चुके होते हैं तो अपनी बेईमानी या धोखाधड़ी को सही साबित करना मुश्किल हो जाता है। वर्ल्ड बैंक की मानें तो हर साल करीब 100 करोड़ डॉलर रिश्वतखोरी के तौर पर एक्सचेंज किया जाता है।

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