जेट एयरवेज की रेटिंग घटी, कर्ज वसूली के लिए दबाव बढ़ा सकते हैं बैंक

 
मुंबई 

जेट एयरवेज दिसंबर में लोन पर डिफॉल्ट कर गई। इस वजह से उसे कर्ज देने वाले बैंक बकाया रकम की वसूली के लिए मैनेजमेंट पर दबाव बढ़ा सकते हैं। वे कंपनी से हिस्सेदारी या संपत्ति बेचकर रकम चुकाने की मांग भी कर सकते हैं। जेट के डिफॉल्ट की जानकारी देने और रेटिंग एजेंसी इकरा के उसके डेट को 'सी' से डाउनग्रेड करके 'डी' करने के बाद कंपनी के शेयर प्राइस में बुधवार को गिरावट आई। उन कंपनियों को डी रेटिंग दी जाती है, जिनके डिफॉल्ट करने का अंदेशा होता है। 

इकरा ने एक स्टेटमेंट में बताया, 'कंपनी फंड जुटाने में देरी कर रही है। इससे उसकी वित्तीय मुश्किलें बढ़ी हैं।' रेटिंग एजेंसी ने बताया, 'जेट पहले से ही एंप्लॉयीज को समय पर सैलरी नहीं दे पा रही है। एयरक्राफ्ट लीज रेंटल पेमेंट का भुगतान भी कंपनी समय पर नहीं कर पा रही है।' जेट का शेयर बुधवार को 6.16 पर्सेंट की गिरावट के साथ 263.75 रुपये पर रहा। इससे पहले मंगलवार रात को कंपनी ने एक्सचेंजों को डिफॉल्ट के बारे में बताया था। जेट पर 8,000 करोड़ रुपये का कर्ज है। 

मार्केट शेयर के लिहाज से देश की दूसरी बड़ी एविएशन कंपनी ने कहा, 'एसबीआई की अगुवाई में बैंकों के समूह से मिले कर्ज पर ब्याज और मूलधन का भुगतान 31 दिसंबर 2018 को करना था। इसमें कैश फ्लो को लेकर अस्थायी दिक्कत से देरी हुई है। कंपनी बैंकों के साथ इस मामले में बातचीत कर रही है।' 

जेट को कर्ज देने वाले एक सरकारी बैंक के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, 'बैंक पहले से ही जेट एयरवेज के संपर्क में हैं। कंपनी को अभी फंडिंग संबंधी दिक्कत हो रही है। दिसंबर के डिफॉल्ट के बाद बैंकों की कंपनी के साथ इस चर्चा में तेजी आएगी। हम अगला कदम तभी तय कर पाएंगे, जब पता चले कि कंपनी की वित्तीय हालत कितनी खराब है। क्या वह कैश फ्लो को लेकर अस्थायी समस्या का सामना कर रही है या यह बड़े डिफॉल्ट का संकेत है। इसका पता आने वाले दिनों में लगेगा।' 

आर्थिक संकट में फंसी जेट के लिए यह हालिया और सबसे गंभीर झटका है। कंपनी घाटे में है। वह समय पर सैलरी नहीं दे पा रही है और उसने छंटनी भी की है। कंपनी के कई विमान उड़ान नहीं भर पा रहे हैं और उसने फ्लाइट्स में भी कटौती की है। इस मामले की करीबी तौर पर जानकारी रखने वाले एक अधिकारी ने बताया कि जेट दिसंबर की किस्त नहीं चुका पाई। इससे उसे दिया गया लोन एसएमए-0 कैटेगरी में चला गया है। इसमें ऐसे कर्ज को डाला जाता है, जिसकी किस्त मिलने में 1 से 30 दिनों की देरी होती है। अगर जेट 30 दिन के बाद भी किस्त नहीं दे पाती तो इसे एसएमए-1 वर्ग में डाला जाएगा। 

61 से 90 दिनों के डिफॉल्ट को एसएमए-2 कैटेगरी में डाला जाता है। वहीं, अगर किस्त 90 दिनों तक नहीं मिलती तो लोन नॉन-परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) बन जाता है। तब बैंकों को रिकवरी न होने की आशंका को देखते हुए इसके लिए प्रोविजनिंग करनी पड़ती है। 
 

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