…जब कोरोना पर भारी पड़ती है पेट की भूख, कुछ ऐसा है दिल्ली के शेल्टरों का हाल

नई दिल्ली 
दिल्ली में रिक्शा चलाने वाले रामपाल हर रोज निगमबोध घाट के पास सड़क किनारे पर अपना रिक्शा खड़ा कर देते हैं। इसके बाद सरकार द्वारा चलाए जा रहे शेल्टर में भोजन के लिए सैकड़ों की लाइन में शामिल हो जाते हैं, कभी-कभी यह भीड़ हजारों की संख्या में होती है, लेकिन इन्हें लगने वाली भूख के आगे कोरोना वायरस का खतरा उन्हें कम लगता है।  उत्तर प्रदेश के जौनपुर निवासी रिक्शा चालक रामपाल ने कहा, "किसी भी बीमारी के होने से पहले ही भूख हमें मार देगी। शहर में हजारों लोग ऐसे फंसे हैं, जिनका यहां अपना घर नहीं है और वे अपने घर लौट नहीं पा रहे हैं। 21 दिन के लॉकडाउन में कमाई का कोई साधन नहीं है, जिसके चलते वो जीवन के कठिन पड़ाव में आ गए हैं। अधिकारियों ने बताया कि शुक्रवार को खाने के लिए आश्रय के बाहर करीब 5,000 लोग इकट्ठा हो गए। ऐसे में कोरोना के खतरे को देखते हुए एक मीटर की सोशल डिस्टेंस बनाए रखना जरूरी हो गया है। उन्होंने कहा कि खाना लेने के लिए आने वाले अधिकांश लोग बिना मास्क के होते हैं, जिससे वे कोरोना की चपेट में आ सकते हैं। 

बता दें, भारत में कोरोना संक्रमण से 873 मामले सामने आए हैं, जबकि 19 लोगों की मौत इससे हुई है। रामपाल को खाने के लिए लगभग एक घंटे इंतजार करना पड़ा। उन्होंने कहा, "मेरे पास क्या विकल्प है? मैं और कहां जा सकता हूं? मैंने दो दिन से एक भी रुपया नहीं कमाया है। अन्य आश्रय स्थलों में भी स्थिति समान है। बता दें, दिल्ली सरकार ने दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (DUSIB) को लॉकडाउन से प्रभावित हुए बेघर और प्रवासी कामगारों को मुफ्त में भोजन देने के लिए कहा है। DUSIB राष्ट्रीय राजधानी में 234 रैन बसेरे चल रहे हैं। 

भोजन पर प्रति व्यक्ति 20 रुपये खर्च करती है सरकार 
डीयूएसआईबी के सदस्य एके गुप्ता के अनुसार, वे हर रोज करीब 18,000 लोगों को खाना दे सकते हैं, लेकिन कभी-कभी उन्हें दोबारा देना पड़ जाता है। उन्होंने बताया कि सरकार भोजन पर प्रति व्यक्ति 20 रुपये खर्च करती है। भोजन में चार चपातियां या पूड़ी, चावल और दाल शामिल हैं। एके गुप्ता ने कहा कि लॉकडाउन के कारण बड़ी संख्या में लोग भोजन की तलाश में रैन बसेरों का चक्कर लगा रहे हैं। जिससे कुछ तनाव होता है, लेकिन यहां कच्चे माल की कोई कमी नहीं है। 

पहली प्राथमिकता लोगों को भोजन देना 
गुप्ता ने कहा, "हमारी पहली प्राथमिकता लोगों को भोजन देना है। लेकिन हमारे कर्मचारी पूरी सावधानी बरत रहे हैं, वे मास्क पहनते हैं और नियमित रूप से हाथ धोते हैं। साथ ही सोशल डिस्टेंस बनाए रखने के नियम का पालन करते हैं। लेकिन रैन बसेरों में जुटे सभी लोगों से एक-एक कर यह कहना संभव नहीं है कि वे अपने बीच अनिवार्य रूप से एक मीटर की दूरी बनाए रखें।" 

दिल्ली में बड़ी संख्या में रहते हैं प्रवासी दिहाड़ी मजदूर 
खाद्य अधिकार प्रचारक अंजलि भारद्वाज ने पीटीआई को बताया कि "दिल्ली में एक बड़ी आबादी प्रवासी लोगों की और बड़ी संख्या दिहाड़ी मजदूरों की है। ऐसे लोग असंगठित क्षेत्र में काम करते है, जिसके चलते इनके पास कोई बड़ी बचत नहीं होती है, जो होती है वो बहुत जल्दी खत्म हो जाती है। जिसक चलते वे बहुत जल्दी बेसहारा हो जाते हैं। जब तक पका हुआ भोजन ऐसे लोगों तक पहुंचे ये लोग बहुत बड़ी संख्या में इन केंद्रों पर पहुंचना शुरू कर देंगे।" 

आंगनवाड़ी और स्कूल में की गई है भोजन की व्यवस्था 
उन्होंने कहा कि कर्फ्यू के इस समय में कोई सार्वजनिक परिवहन नहीं है। लोग रैन बसेरों तक पहुंचने के लिए लंबे समय तक नहीं चल सकते हैं। इसलिए, उनके भोजन की व्यवस्था पास के आंगनवाड़ी केंद्र या स्कूल में की गई है, ताकि इन लोगों तक भोजन आसानी से पहुंच सके। इससे भीड़भाड़ नहीं होगी और उनके बीच सोशल डिस्टेंस बनाकर रखी जा सकेगी।" 

प्रवासी मजदूरों की मदद के लिए काम कर रहे कई संगठन 
दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, गैर-सरकारी संगठन और सिविल सोसाइटी के सदस्य ऐसे सैकड़ों बेघर लोगों और प्रवासी कामगारों को मदद के लिए हाथ बंटा रहे हैं और ऐसे लोगों को भोजन और पानी मुहैया करा रहे हैं, जिन्हें पता नहीं है कि कहां जाना है। एक एनजीओ चलाने वाली गीतांजलि चोपड़ा ने कहा कि उनका संगठन मदद करने वाले लोगों के घरों से सीधे खाना इकट्ठा करता है और फिर जरूरतमंदों तक पहुंचाता है। इतना सब होने के बाद भी कई लोग भूखे रहते हैं। मुन्ना नामक एक रिक्शा चालक ने बताया कि एक सामान्य दिन में वो लगभग 300 रुपये कमाता था। लेकिन लॉकडाउन के चलते उसे आज केवल एक यात्री मिला, जिसने उसे 30 रुपये और खाने के लिए चावल दिए। वहीं जंगलपुरा में एक फुट-ओवर ब्रिज के नीचे बैठे भिखारी काशी ने बताया कि उसकी रोजी-रोटी राहगीरों पर निर्भर है, जिनकी संख्या लॉकडाउन के कारण कम हो गई है। 

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