चुनावी गणित: गैर हिंदी राज्यों में बढ़ेगा भाजपा का मत प्रतिशत?
नई दिल्ली
लोकसभा चुनाव में भाजपा गैर हिन्दी क्षेत्र में भी सफलता की उम्मीदें लगाए बैठी है। दक्षिणी राज्यों के साथ-साथ उसे ओडिशा, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर में भी अच्छे प्रदर्शन की आस है। पार्टी प्रदर्शन कैसा रहता है, यह तो चुनाव नतीजे बताएंगे लेकिन इतना तय माना जा रहा है कि पार्टी का दायरा इन चुनावों में बढ़ेगा और मत प्रतिशत के लिए लिहाज से उसकी उपस्थिति कई राज्यों में मजबूत होगी।
पार्टी का दायरा बढ़ा :
पिछले लोकसभा चुनाव तक भाजपा की पहचान हिन्दी राज्यों की पार्टी के रूप में थी। लेकिन पिछले पांच वर्षों में उसने अपना दायरा बढ़ाया है। पूर्वोत्तर से लेकर दक्षिणी राज्यों में काम किया है। पश्चिम बंगाल और ओडिशा में पार्टी ने सक्रियता बढ़ाई। इन राज्यों में पार्टी अब मुकाबले में दिख रही है। इसी प्रकार केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश आदि राज्यों में कहीं अकेले तो कहीं गठबंधन के साथ मैदान में उतरी है।
दूसरे पायदान पर आने की कोशिशें :
पश्चिम बंगाल में भाजपा का मत प्रतिशत पिछले चुनाव में 17 फीसदी तक पहुंच गया था। इस बार सीटें कितनी जीतती है, यह कहना मुश्किल है लेकिन नतीजे यह जरूरत साबित करेंगे कि वहां पार्टी मजबूत हुई है। इसी प्रकार ओडिशा में पार्टी की स्थिति पहले से बेहतर होने वाली है। वहां पिछले चुनाव में भाजपा को 21 और कांग्रेस को 26 फीसदी वोट मिले थे। भाजपा तीसरे स्थान पर थी लेकिन इस बार दूसरे पर रह सकती है।
ये मुद्दे कर सकते हैं फायदा :
केरल में पार्टी सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है। सबरीमाला और अन्य मुद्दों को लेकर जिस प्रकार भाजपा ने वाम सरकार की नाक में दम किए रखा, उसका लाभ पार्टी को वोट प्रतिशत बढ़ाने में मिल सकता है। केरल में पिछले चुनाव में उसे 10.33 फीसदी मत मिले थे। लेकिन 2016 के विधानसभा चुनाव में यह प्रतिशत 15 फीसदी तक जा पहुंचा।
सभी सीटों पर मैदान में :
पूर्वोत्तर के राज्यों में आधा दर्जन से अधिक दलों से गठबंधन करके भाजपा ने 25 सीटों पर दांव लगाया है। ज्यादातर सीटों पर वह खुद लड़ रही है। यहां पार्टी अपना आधार मजबूत कर रही है। माना जा रहा है कि पार्टी की यह रणनीति आने वाले चुनावों को भी ध्यान में रखकर बनाई गई है।