चीन बनाम अमेरिका में पाकिस्तान ने क्यों लिया बीजिंग का पक्ष?

नई दिल्ली
ऐसे वक्त में जब पूरी दुनिया कोरोना वायरस महामारी फैलने को लेकर चीन के ऊपर ऊंगली उठा रही है, इस्लामाबाद पूरी तरह  एकजुटता के साथ बीजिंग के पक्ष में खड़ा है। यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है कि बीजिंग अपने सभी दोस्तों या ग्राहकों से समर्थन मांग रहा था। कुछ विश्लेषकों ने चीन और पाकिस्तान के बीच संबंधों का वर्णन किया है। चीन के ऋण में पूरी तरह से डूबा इस्लामाबाद इस मामले में एक कदम आगे बढ़ गया। चीन ने दुनियाभर के देशों को गहरा जख्म दिया है, खासकर अमेरिका को, जिसने बीजिंग की लापरवाही का सबसे बड़ा खामियाजा भुगता है। कोरोना वायरस के चलते दुनिया की करीब 1 करोड़ 10 लाख आबादी संक्रमित हैं और 5 लाख 30 हजार से ज्यादा जानें जा चुकी हैं। इस कोलाहल भरे समय में जब लामबंदी हो रही है तो इस्लामबाद की विदेश नीति के क्षेत्रों में कुछ असहजता के बावजूद पाकिस्तान चीन के समर्थन में सबसे तेज आवाज के साथ था।

कोरोना वायरस के प्रकोप से पहले तक पाकिस्तान विदेश नीति के मोर्चे पर आरामदायक स्थिति में था, खासकर अमेरिका और चीन को संतुलन बनाकर रखने के मामले में। पाकिस्तान लगातार तालिबान पर अपने प्रभाव के चलते अमेरिका से वैश्विक आतंकवाद वित्त पोषण पर निगरानी रखने वाले फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) से छूट का लाभ ले रहा था। वाशिंगटन का एफएटीएफ एक्शन प्लान लागू करने में पाकिस्तान की विफलता के बावजूद उसके प्रति प्रति नरम रुख था और फरवरी में पेरिस प्लेनरी में अतिरिक्त समय दिया गया था। ऐसे में पाकिस्तान का विदेश विभाग किसी भी मुश्किल स्थिति से निपटने के लिए इन चीजों का सहारा लेता था। ऐसे वक्त में जब पूरा दुनिया बीजिंग के खिलाफ खड़ी है, पाकिस्तान ने उसका पक्ष लेने का फैसला किया है। जब पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने अपने चीनी समकक्षीय शाह महमूद कुरैशी के साथ फोन पर बात की, तो पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय को ‘वन चाइन पॉलिसी’ से लेकर हांगकांग, ताइवान, तिब्बत और जिनजियांग का संदर्भ देते हुए उसके कोर हितों का समर्थन करना पड़ा।

चूंकि पाकिस्तान में सत्ता तंत्र के बावजूद सेना एक मजबूत स्थिति में रही है। यह भी हो सकता है कि अगर उत्तर कोरिया की तरह पाकिस्तान को फिर से क्लब जाता जाता है, तो उसके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है। वास्तव में, इसके आलोचकों की तरफ से यह तर्क दिया गया है कि राजनीति और नागरिक जीवन पर सेना का दबदबा पाकिस्तान के हाशिए पर बढ़ने के अनुपात में बढ़ जाता है, क्योंकि इसके नेतृत्व के लिए भौतिक धन का उपयोग होता है। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका से सबसे ज्यादा फायदा वहां की सेना को मिलता था। जब यह कुआं सूखने लगा, तो इसने बीजिंग के तौर पर एक इच्छुक दानदाता पाया। जिसके लिए चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा एक महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के लिए एक प्रमुख परियोजना बना है। यह पाकिस्तान को कर्ज की दलदल में और फंसा सकता है। अमेरिका को नाराज करने के बाद पाकिस्तान को सीपैक से कितना फायदा होगा इस बारे में कुछ अभी नहीं कहा जा सकता है लेकिन अगर वह एक्शन प्लान के हिसाब से नहीं कर पाया तो एफएटीएफ ब्लैक लिस्ट का उसे सामना करना पड़ सकता है।
 

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