कश्मीर में करवट ले रही नई सियासत, अलगाववादी भी तलाश रहे नया रास्ता

श्रीनगर
जम्मू-कश्मीर को मिला विशेष दर्जा खत्म होने के बाद कश्मीर घाटी में राजनीति अभूतपूर्व रूप से नई करवट लेने लगी है। एक ओर कुछ अलगाववादी मुख्यधारा की राजनीति से जुड़ने की सोच रहे हैं, तो दूसरी ओर मुख्यधारा से जुड़े कुछ नेताओं का प्रतिद्वंद्वी पार्टियों में पालाबदल के लिए झुकाव नजर आ रहा है। अलगाववाद और मुख्यधारा की सियासत से जुड़े नेताओं के करीबियों ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि राज्य को दो हिस्सों में बांटने के शुरुआती झटके और आर्टिकल 370 और 35ए पर केंद्र के ऐक्शन के बाद सभी समूह अपने राजनीतिक भविष्य पर मंथन में जुटे हैं।

एनसी 1953 से पहले की स्थिति बहाली के पक्ष में
पिछले 30 साल के दौरान हिंसा और आतंकवाद के बीच जहां अलगाववादी भारतीय संविधान को नकारते हुए भारत से अलग होने की मांग उठाते रहे हैं, वहीं कश्मीर की सबसे पुरानी पार्टी नैशनल कॉन्फ्रेंस ने जम्मू-कश्मीर को 1953 से पहले मिली स्वायत्तता बहाल करने की मांग की है। मुख्यधारा की अन्य सियासी पार्टियों में एक पीपल्स डेमोक्रैटिक पार्टी (पीडीपी) नरम अलगाववाद के साथ धार्मिक प्रतीकात्मकता के पक्ष में खड़ी दिखती रही है।

लद गए अलगाववाद के दिन
क्षेत्रीय राजनीति में प्रवेश के इच्छुक एक ऐक्टिविस्ट मुदस्सिर ने टीओआई को बताया, 'हम अब देश के बाकी हिस्सों की तरह हैं। पार्टियों को अब अलगाववाद, नरम अलगाववाद और स्वायत्तता के बजाए शासन से जुड़े मुद्दों पर लड़ना होगा। आज की तारीख में कश्मीर में सभी क्षेत्रीय पार्टियों का राजनीतिक अजेंडा महत्वहीन हो गया है।'

हुर्रियत का अलगाववादी अजेंडा फेल
हुर्रियत के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि उनके युवा कार्यकर्ता मुख्यधारा से जुड़ने के इच्छुक हैं। हजरतबल इलाके में एक अलगाववादी ने पहचान गुप्त रखने की शर्त पर बताया, 'लोगों को अब अहसास हुआ है कि पाकिस्तान और भारत, दोनों से फंडिंग पर निर्भर अलगाववाद से कश्मीर की जनता को कोई मदद नहीं मिली है। संघर्ष में आम कश्मीरी मारे जाते हैं, लेकिन अलगाववादी नेता और उनके बच्चे आलीशान जिंदगी जीते हैं।'

फारूक और उमर के विपरीत विचार
नैशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के सूत्रों का कहना है कि पार्टी अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को बहाल करने के लिए लड़ाई लड़ने को तैयार हैं, वहीं उनके बेटे उमर अब्दुल्ला की इच्छा इसके विपरीत है। एक एनसी कार्यकर्ता ने कहा, 'नई सच्चाई को स्वीकार करना अब्दुल्ला परिवार के लिए थोड़ा मुश्किल है। राजनीतिक शक्तियों का ह्रास स्वीकार करना उनके लिए आसान नहीं हैं।'

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