एलओसी पर पाकिस्तान के स्नाइपर्स पड़ रहे हम पर भारी

नई दिल्ली 
जहां हमारे जवानों ने सीमा पार कर आतंकियों पर सर्जिकल स्ट्राइक कर उन्हें सबक सिखाया था वहीं, एलओसी पर अब पाकिस्तानी स्नाइपर हमारी फौज पर भारी पड़ते दिख रहे हैं। स्नाइपर (दूर से निशाना लगाकर गोली मारने वाले) अटैक में इस साल हमारे जितने आर्मी जवान और जेसीओ शहीद हुए हैं, वह सेना की चिंता बढ़ा रहे हैं। ट्रेनिंग में पिछड़ने और लड़ाई के सामान की कमी की वजह से पाकिस्तानी स्नाइपर हम पर हावी हो रहे हैं। सेना के एक अधिकारी ने माना कि पिछले दो साल में जिस तरह पाकिस्तान की तरफ से स्नाइपर अटैक हो रहे हैं और हमारे लोग शहीद हुए हैं, वे आंकड़े चिंताजनक हैं। 

ट्रेनिंग में सुधार की जरूरत 
सूत्रों के मुताबिक पाकिस्तान ने अपने स्नाइपर्स की ट्रेनिंग में बहुत सुधार किया है और जिस तरह पाकिस्तान एलओसी पर स्नाइपर अटैक के जरिए हावी होता दिख रहा है उससे साफ है कि पाक बेहतरीन ट्रेनिंग देने के साथ ही बेहतरीन स्नाइपर राइफल भी इस्तेमाल कर रहा है। हमारी फौज में स्नाइपर्स को मध्य प्रदेश के महू में इंफेंट्री स्कूल में ट्रेनिंग दी जाती है। यह ट्रेनिंग 7 हफ्तों की होती है। 

एक साल पहले तक यह ट्रेनिंग महज 4 हफ्तों की होती थी जिसमें टेक्निकल चीजों पर ज्यादा ध्यान दिया जाता था। अब इसमें कुछ सुधार किया गया है और 7 हफ्तों की ट्रेनिंग में टेक्निकल के साथ टेक्टिकल (निपुणता) पर भी ध्यान दिया जाता है। मेंटल कैपेबिलिटी, शूटिंग स्किल पर भी फोकस होने लगा है। हालांकि कई सीनियर अधिकारियों ने माना कि स्नाइपर ट्रेनिंग में सुधार की जरूरत है। एक अच्छा स्नाइपर 2-3 साल की कड़ी प्रैक्टिस के बाद तैयार होता है और महज स्नाइपिंग की टेक्निकल जानकारी देकर हम स्नाइपर अटैक के मुकाबले में पिछड़ते जाएंगे। 

बिना बुलेट कैसे हो ट्रेनिंग? 
इंफेंट्री स्कूल में ट्रेनिंग के बाद स्नाइपर की ट्रेनिंग बटैलियन लेवल पर भी होती है। आर्मी की हर यूनिट में 10 स्नाइपर होते हैं और नियमों के मुताबिक इनकी ट्रेनिंग भी लगातार यहां होनी चाहिए। हालांकि सूत्रों के मुताबिक यूनिट स्तर पर हमारे स्नापर्स की ट्रेनिंग हो ही नहीं पाती है क्योंकि जो बुलेट आती हैं उसमें 95 पर्सेंट की पाबंदी है यानी जितनी बुलेट आती हैं उसमें से महज 5 पर्सेंट ही ट्रेनिंग के लिए इस्तेमाल करने की इजाजत है, क्योंकि हमारे पास बुलेट की कमी है और ट्रेनिंग के लिए आई बुलेट को भी बचाया जाता है। हालांकि सरकार ने बुलेट की कमी दूर करने के लिए कदम बढ़ाए हैं। इसी साल सितंबर में रूस से कॉन्ट्रैक्ट साइन हुआ है जिसके तहत 31 लाख राउंड बुलेट खरीदी जा रही हैं। इसमें से 15 लाख राउंड बुलेट जल्द ही आने वाली हैं और बाकी जून तक आएंगी। अभी हमारे स्नाइपर ड्रेगनॉफ राइफल (dragunov rifle) का इस्तेमाल करते हैं जो बेहद पुराने डिजाइन की हैं। सरकार ने तीन महीने पहले 5719 नई स्नाइपर राइफल खरीदने की प्रक्रिया शुरू की है, जिसके लिए 982 करोड़ रुपये अप्रूव किए गए हैं। इनकी इफेक्टिव रेंज 1300 मीटर होगी। अभी इसके लिए आरएफपी (रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल) जारी किया गया है यानी नई राइफल आने में तीन से चार साल का वक्त लगेगा। इनके साथ ही टेलिस्कोपिक साइट (दूर तक देखने वाली डिवाइस) और इन राइफल की 50 हजार राउंड बुलेट भी खरीदी जाएंगी और फिर बाकी भारत में ही बनाई जाएंगी। 

60 के दशक की राइफल से कैसे करें मुकाबला? 

  • हमारे स्नाइपर्स के पास ड्रेगनॉफ राइफल हैं, जो 1960 के दशक का डिजाइन है। 
  • इसकी रेंज महज 800 मीटर है जबकि नए डिजाइन की स्नाइपर राइफल में कम से कम रेंज 1000 मीटर से ज्यादा होती है। 
  • राइफल इतनी पुरानी हैं कि नई टेलिस्कोपिक साइट डिवाइस इसमें फिट ही नहीं हो पाती। 
  • इस राइफल में कोई सपॉर्ट सिस्टम नहीं है जिससे निशाना चूकने के चांस ज्यादा रहते हैं। 

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