एमपी में कमलनाथ के आपरेशन कमल की आंखो देखी….

 

 

कर्नाटक में कुमारस्वामी सरकार क्या गिरी हमारे लिये नयी मुसीबत हो गयी। रोज सुबह दफ्तर से यही फोन आता था कि और कब तक है कमलनाथ सरकार ? दिल्ली से दोस्तों के फोन पर भी यही सवाल और एमपी में कब हो रहा है कर्नाटक सरीखा आपरेशन कमला। बीजेपी के पूर्व सीएम शिवराज सिंह से लेकर प्रतिपक्ष के नेता गोपाल भार्गव और बाकी लोग कमलनाथ सरकार को अब गिरी तब गिरी बताते और हमें उन सबकी बाइट बटोरनी पडती ये जानते हुये भी कि इन तिलों में कोई तेल नहीं है। क्या करें टीवी पत्रकारिता का फार्मेट ही अब ऐसा हो गया है। नेता की बयानबाजी ही अब राजनीति रिपोर्टिंग है।

उस दिन भी यही हुआ। फोन आया कि कर्नाटक सरकार गिरने के बाद अब एमपी की बारी लग रही है। भार्गव और शिवराज से बात करो कमलनाथ सरकार गिराने पर क्या रणनीति रहेगी उनकी। दफ्तर की फरमाइश पूरी करना ही रिपोर्टर का परम धर्म होता है इसलिये सुबह साढे नौ बजे हम शिवराज जी के घर पर थे मगर उनके मीडिया मैनेजर का कहना था कि आज तो शिवराज जी से बात होनी मुश्किल है। विधानसभा में आज किसानों पर चर्चा होनी है वो उसी तैयारी में लगे हैं। हमारे लिये दूसरा टारगेट थे नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव। वो विधानसभा के लिये रवाना होने  वाले थे उनके निकलते ही हमने घेरा और सरकार के खिलाफ भरे बैठे भार्गव जी ने कहा कि कर्नाटक के बाद इस कमलनाथ सरकार का पिंडदान होना तय है। बस कुछ दिन और महीनों की बात है। चैनल को सुबह से निर्धारित स्टोरी लाइन में बडा न्यूज पेग मिल गया था। अगले कुछ मिनिट बाद ही हम भार्गव जी के बंगले के बाहर बुलेटिन में लाइव थे और समझा रहे थे कर्नाटक सरकार के गिरने के बाद बीजेपी नेता बयान देकर सिर्फ दबाव की राजनीति कर रहे है। बीजेपी को कांग्रेस सरकार को गिराना ही होता तो बजट सत्र के दौरान किसी भी मांग पर मत  विभाजन मांग कर वोटिंग करा लेते और सरकार गिरा लेते मगर यहां तो बजट पारित हो गया और आज विधानसभा भी खत्म होने को है।

  1. उधर विधानसभा के अंदर बजट सत्र के अंतिम दिन कर्नाटक एपीसोड की गर्मी ही गहरायी हुयी थी। पूर्व सीएम शिवराज वर्तमान सीएम कमलनाथ को समझा रहे थे कि आपकी सरकार अल्पमत की है तो है इसमें डरना क्या जब तक है चलाइये नहीं तो एक तरफ हो जाइये मगर तनाव मत पालिये हम ये नहीं चाहते कि हमारा सीएम तनाव में दिखे। भार्गव जी भी भला कैसे पीछे रहते वो अमर वाक्य बोल ही गये कि जिस दिन हमारे नंबर एक और नंबर दो ने इशारा कर दिया तो चौबीस घंटे नहीं रहेगी ये सरकार। इस बयान पर शोर शराबा और हंगामा हुआ। कमलनाथ ने अब तक दिल्ली की राजनीति की है जिसमें खुलकर ऐसे आरोप प्रत्यारोप आमने सामने नहीं लगते तो वे थोडे परेशान दिखे और कहने लगे कि आप सब जो रोज गले में ढोलकी लटकाकर कहते हो अल्पमत की सरकार तो आज अविश्वास प्रस्ताव ले आइये और दूध का दूध पानी का पानी कर दीजिये। सदन में ये गर्मागर्मी बहुत दिनों के बाद देखी जा रही थी इसलिये हम जिस पत्रकार दीर्घा में बैठे थे वहां पर भीड बढती जा रही थी। लंच के बाद फिर सदन बैठा तो आम दिनों के मुकाबले कांग्रेस की तकरीबन सारी बैंच भरी हुयी दिखीं। उसके मुकाबले बीजेपी की बैंच खाली थीं। शिवराज  किसानों की चर्चा पर पन्ने पलट पलट कर बारी का इंतजार कर रहे थे तो भार्गव जी पीछे के उठे हुये कुर्ते में लगातार खडे होकर टीका टिप्पणी किये जा रहे थे। माब लिंचिंग के खिलाफ सरकार ने जो विधेयक लाया था वो यदि पास होता तो बडी खबर होती इस अंदेशे में हम राष्ट्रीय चैनल के पत्रकार बैठे थे मगर ये क्या वो बिल तो सदन की समिति को दे दिया मगर विधि मंत्री पीसी शर्मा ने जो विधि दंड विधेयक में संशोधन रखा तो उस पर बीजेपी के समर्थन के बाद भी बीएसपी के संजीव सिंह मत विभाजन या वोटिंग की मांग करने लगे। बीजेपी के नेताओं को काटो तो खून नहीं। सारा गणित वहां बैठे शिवराज और भार्गव जी को समझ में आ गया। बीजेपी के लोग कहने लगे कि जिस विधेयक पर सदन एकमत है उस पर वोटिंग क्यों। मगर किसी खास रणनीति के तहत संजीव मत विभाजन पर वोटिंग की मांग करते रहे। और थोडी देर बाद मत विभाजन की मांग विधानसभाध्यक्ष ने मान ली । बीजेपी के नेता शिवराज और उनकी बगल में बैठे भार्गव की सीट के इर्द गिर्द जमा हो गये कोई वाकआउट की सलाह दे रहा था तो कोई पक्ष और विपक्ष में वोट करने की। उधर कांग्रेस की बैंचों पर उत्साह का माहौल था हांलाकि कमलनाथ थोडे तनाव में सबके बाद वोट करने गये ओर खुशी खुशी लौटे। थोडी देर बाद ही विधानसभाध्यक्ष एनपी प्रजापति ने आसंदी से खडे होकर कहा कि पक्ष में 122 तो विपक्ष में शून्य मत पडे तो साफ हो गया था कि सदन में कमलनाथ ने किसी भी तरह से बहुमत बता दिया।

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