आज तक वास्तु के कारण विभाजित हुए और होते रहेंगे देश-प्रदेश

भारत सदियों से छोटे-छोटे राज्यों में ही विभाजित रहा है। यदि किसी सम्राट ने अपनी ताकत के जोर पर इसे एक कर भी लिया तो एकीकरण के कुछ समय पश्चात ही पुनः विभाजन की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गई। जो वर्तमान में भी निरन्तर जारी है और

भारत सदियों से छोटे-छोटे राज्यों में ही विभाजित रहा है। यदि किसी सम्राट ने अपनी ताकत के जोर पर इसे एक कर भी लिया तो एकीकरण के कुछ समय पश्चात ही पुनः विभाजन की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गई। जो वर्तमान में भी निरन्तर जारी है और आगे भी जारी रहेगी। यह तय है क्योंकि भारत की भौगोलिक स्थिति ही कुछ ऐसी है कि विभाजन की प्रक्रिया निरंतर चलती रहेगी। जब किसी देश का विभाजन होता है तो उस देश के नागरिक भी विभाजित हो जाते हैं। सामान्यतः विभाजन दो तरह के होते हैं। हम इसको इस प्रकार समझ सकते हैं जैसे दो भाइयों के संयुक्त परिवार में आपसी तालमेल की कमी के कारण विभाजन हुआ। विभाजन के दौरान आपस में तय हुआ कि कारोबार तो संयुक्त ही रहेगा, किन्तु घर के दो हिस्से कर खाना और रहना अलग-अलग होगा। मकान के हिस्से हो गए।

दूसरा विभाजन इस प्रकार होता है कि मकान के साथ-साथ कारोबार का भी विभाजन हो जाता है। उसी प्रकार देश के विभाजन दो प्रकार के होते हैं। एक दोनों देश की अपनी-अपनी सीमाएं तय हो जाती हैं और अलग-अलग होकर दोनों देशों को स्वतंत्र रूप से चलाया जाता है जैसे भारत और पाकिस्तान। जो पहले वाला विभाजन है वह इस प्रकार है कि देश के अन्दर ही राज्य कई भागों में विभाजित होते जाते हैं परन्तु केंद्र में शासन एक ही होता है जैसे मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश-उत्तरांचल इत्यादि। जिस तरह घर के विभाजन में आपसी मतभेद कारण बनते हैं, उसी प्रकार देश के विभाजन में उनकी भौगोलिक स्थिति मुख्य कारण होती है।

विश्व में जिन-जिन देशों में विभाजन हुए उन देशों की सीमाओं के मध्य उत्तर से ईशान कोण होते हुए मध्य पूर्व वाले भाग में ऊंचाई है और देश की बाकी अन्य दिशाएं निचाई लिए हुए हैं क्योंकि वास्तु सिद्धान्त है कि अगर उत्तर ईशान और पूर्व ऊंचे हों, आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य, पश्चिम और वायव्य निचले हो तो धन और संतान के साथ-साथ पारिवार का नाश होगा अर्थात देश के मामले में धन हानि के साथ-साथ देश के टुकड़े होंगे और विभाजन के दौरान जनसंहार भी होगा जैसे कि भारत के विभाजन के दौरान हुआ।

विभाजन के पूर्व भी भारत की उत्तर दिशा में हिमालय, ईशान के साथ मिलकर पूर्व दिशा में भी पहाड़ी थी (जहां असम, मिजोरम इत्यादि थे जो अभी भी है) और वायव्य कोण में हिन्द कुश पर्वत था।

वास्तु सिद्धान्त के अनुसार आग्नेय, दक्षिण और नैऋत्य निचले होकर पश्चिम और वायव्य उत्तर ईशान और पूर्व से ऊंचे हो तो भूमि का स्वामी तरह-तरह की व्यथाओं, कष्टों, धन के नष्ट तथा पारिवारिक क्षति से पीड़ित होगा।

अगर आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य और पश्चिम निचले होकर वायव्य उत्तर, ईशान और पूर्व ऊंचे हो तो उस भूमि के स्वामी की पत्नि का निधन हो जाएगा, संतान और सम्पत्ति का नाश होगा, ऋणों एवं रूग्णता के कारण होने वाले कष्टों से पीड़ित होगा।

विभाजन के पूर्व भारत की इन्हीं भौगोलिक स्थिति के कारण ही भारत और पाकिस्तान के निवासियों को उपरोक्त कठिनाईयों से विभाजन के वक्त गुजरना पड़ा।

विभाजन के पूर्व एक तरफ पूर्व आग्नेय मिलकर दक्षिण बढ़ा हुआ था, जबकि दूसरी ओर पश्चिम नैऋत्य से मिलकर दक्षिण घटा हुआ था। नेपाल और भूटान के कारण उत्तर दिशा का भाग कटा हुआ था।

वास्तु सिद्धान्त के अनुसार आग्नेय के कोने मात्र में बढ़ाव होता तो आर्थिक लाभ तो होगा लेकिन दोबारा खर्च का संकेत भी मिलता है। बीमारियों और अदालती व्यवहारों की पीड़ा भी मिलेगी।

नैऋत्य में अगर बहुत बड़ा बढ़ाव होता तो भूमि का स्वामी अक्सर बीमारियों से, शत्रुओं के द्वारा मिलने वाले कष्टों और धन नष्ट से पीड़ित होगा।

दक्षिण के साथ मिलकर अगर नैऋत्य में बढ़ाव होता तो मालिक रोगों, प्राण-भय और अकाल मृत्यु के भय से पीड़ित होगा।

पश्चिम के साथ मिलकर नैऋत्य में बढ़ाव होता तो धन का भारी नाश होगा। इसके अतिरिक्त भूमि का मालिक दुस्संगति में पड़कर कुकर्मों के लिये बहुत पैसा खर्च करेगा, व्यसनों का दास बनेगा, जिद्दी बनेगा और समय-स्फूर्ति के अभाव में अधिक धन व्यर्थ करेगा।

अगर वायव्य में अधिक बढ़ाव होता तो प्लॉट का स्वामी अनेक बाधाओं, कष्टों, अधिक खर्च दुःख, अशान्ति, निर्धनता तथा पुत्रों के निधन आदि का सामना करेगा।

उपरोक्त भौगोलिक स्थिति के कारण ही देश का विभाजन हुआ है, सदियों तक देश पराधीन रहा, गरीबी रही। जिन भौगोलिक स्थिति से निर्मित वास्तुदोषों के कारण यह विभाजन हुआ वह वास्तुदोष विभाजन के लिए भारत और पाकिस्तान में आज भी विद्यमान है, क्योंकि पाकिस्तान में ईशान कोण की तरफ हिन्दू कुश पर्वत नार्थ वेस्ट फ्रंट्रियर की पहाड़ियों की ऊंचाईयां सबसे ज्यादा हैं और पूरे पाकिस्तान की भूमि का झुकाव दक्षिण दिशा की ओर है।

पाकिस्तान की इन्हीं भौगोलिक स्थितियों के कारण इसका एक विभाजन हुआ, जिससे बंगलादेश बना और यही भौगोलिक स्थिति आगे भी विभाजन कराती रहेगी, यह तय है।

इसी प्रकार भारत की भी वास्तु स्थिति अच्छी नहीं है। भारत की उत्तर दिशा एवं ईशान कोण (जहां अरुणाचल प्रदेश वाला भाग ऊंचाई लिए हुए है) के साथ ही पूर्व दिशा में ऊंची-ऊंची पहाड़ियां हैं। जहां इम्फाल, मिजोरम, नागालैण्ड, मेघालय है। यही ऊंचाई देश के विभाजन का कारण बनी। देश के वर्तमान वास्तुदोषों के कारण देश में और भी विभाजन होंगे और गंभीरता से सोचा जाए तो आजादी के बाद देश के कई प्रदेशों का विभाजन हुआ। विशेषतौर पर देश का ईशान कोण वाला भाग सात भागों में बंट गया।

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