आइसलैंड में शोक, जलवायु परिवर्तन की भेंट चढ़ा ग्लेशियर ओकोजोकुल

 
रिक्जाविक 

आइसलैंड के निवासी अपने ग्लेशियर के खत्म हो जाने का शोक मना रहे हैं। रविवार को प्रधानमंत्री केटरिन जोकोबस्दोतियर के नेतृत्व में मंत्रियों के समूह ने ग्लेशियर ओकजोकुल को श्रद्धांजलि दी। ओकजोकुल पहला ग्लेशियर है जिसका आधिकारिक तौर पर ग्लेशियर का दर्जा समाप्त कर दिया गया। अगले 200 साल में विश्व के सभी प्रमुख ग्लेशियर का हश्र ऐसा ही होने की आशंका जताई जा रही है। प्रधानमंत्री की तरफ से जारी संदेश में कहा गया, 'यह हमारे लिए स्वीकार करने का वक्त है कि क्या हो रहा है। जो हो रहा है उसे रोकने के लिए कौन से कदम उठाने हैं, इसकी भी हमें जानकारी है।' 

ग्लेशियर की याद में जारी किया गया शोक संदेश

ग्लेशियर के शोक में कांस्य पट्टिका का अनावरण किया गया जिसमें इसकी वर्तमान स्थिति बयान करने के साथ ही बाकी ग्लेशियर के भविष्य को लेकर आगाह किया गया गै। आईसलैंड की प्रधानमंत्री कैटरीन जैकोब्स्दोतिर, पर्यावरण मंत्री गुडमुंडुर इनगी गुडब्रॉन्डसन और संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त मेरी रॉबिन्सन भी इस समारोह में शामिल हुए। राइस विश्वविद्यालय में एंथ्रोपॉलजी की एसोसिएट प्रोफेसर सायमीनी हावे ने जुलाई में ही इसकी स्थिति को लेकर आगाह किया था। उन्होंने कहा था, ‘विश्व में जलवायु परिवर्तन के कारण अपनी पहचान खोने वाला यह पहला ग्लेशियर होगा।’ 

वैज्ञानिकों ने पहले ही जारी कर दी थी आशंका 
ओकजोकुल आइसलैंड के पश्चिमी सब-आर्कटिक हिस्से में ओक ज्वालामुखी पर स्थित था। पिछले कुछ वर्षों से लगातार यह ग्लेशियर पिघल रहा था और इसके खत्म होने की आशंका जताई जा रही थी। सैटलाइट इमेज में ग्लेशियर के 14 सितंबर 1986 की तस्वीरें जारी की गई थीं। बाईं ओर 1986 की तस्वीर है और दाईं तरफ 1 अगस्त 2019 की तस्वीर है। 1901 में ओकजुल 38 स्क्वॉयर फीट किलोमीटर में फैला था जो अब घटकर 1 स्क्वॉयर किलोमीटर से भी कम रह गया। 
 
वैज्ञानिक बता रहे हैं इसे खतरे की घंटी 
वैज्ञानिकों का कहना है कि यह भविष्य में आनेवाले खतरों की शुरुआत है। वैज्ञानिकों की एक टीम ने भऴिष्य में आइसलैंड के 400 ग्लेशियर के इसी तरह खत्म होने को लेकर चेतावनी जारी की है। हर साल आइसलैंड में करीब 11 बिलियन टन बर्फ पिघल रही है। इंटरनैशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर का अनुमान है कि अगर ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन इसी रफ्तार से होता रहा तो 2100 तक विश्व के आधे से अधिक ग्लेशियर पिघल जाएंगे।
 

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