अनोखा है इस माता का मंदिर, जहां हमेशा होता रहता है ऐसा
मां दुर्गा के नौ स्वरूप होते हैं जिनके नाम पर देश भर में कई मंदिर है। इन्हीं में से एक मां कुष्मांडा दुर्गा के चौथे स्वरूप के लिए जाना जाता है। मां कुष्मांडा देवी का एक ऐसा मंदिर हैं जो कानपुर से 45 किलोमीटर दूर घाटमपुर जिले में स्थित है।
मां कुष्मांडा देवी के इस मंदिर में मां दुर्गा की प्रतिमा एक पिंडी के रूप में देखने को मिलती हैं। खास बात ये हैं कि इस पिंडी से हमेशा पानी रिसता रहता है। ऐसा माना जाता है कि यहां पर मां दुर्गा सभी की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।
नवरात्र के दिनों में इस मंदिर में मेला भी लगता है जहां लोग दूर-दूर से दर्शन के लिए आते हैं। इस मंदिर की कई खास मान्यताएं हैं। मंदिर में दी गई मान्यताओं के मुताबिक मां कुष्मांडा की पिंडी की कितनी पुरानी है इसे पता लगाना काफी मुश्किल है।
ऐसा कहा जाता है कि घाटमपुर में पहले जगंल हुआ करता था जहां एक कुढाहा नामक ग्वाला अपनी गाय चराने के लिए आया करता था। गाय चरते चरते मां कुष्मांडा की पिंडी के पास अपना सारा दूध गिरा दिया करती थी। जब शाम को कुढाहा दूध निकालने के लिए जाता तो गाय दूध नहीं देती थी। एक दिन गाय का पीछा करने के बाद कुढाहा को गाय की सच्चाई जानने को मिली। उस जगह पर जाकर कुढाहा वहां की साफ सफाई करने लगा। जिसके बाद उसे कुष्मांड़ा की मूर्ति दिखाई दी।
मूर्ति मिलने के बाद कुढाहा वहां की खुदाई शुरू कर दी लेकिन काफी समय तक खुदाई करने के बाद भी उन्हें इसका अंत नहीं दिखा। बाद में कुढाहा ने वहां चबूतरा बनवा दिया। कहा जाता है कि एक रात गांव के किसी के सपने में आकर उन्होंने अपना नाम कुष्मांड़ा बताया जिसके बाद लोग उन्हें कुड़हा और कुष्मांडा दोनों ही नाम से पुकारा जाने लगा। इसके अलावा पिंडी से निकलने वाले पानी को लोग प्रसाद समझकर पीते हैं।
मां कुष्मांडा देवी का निर्माण किसने किया इसे लेकर कई मान्यताएं हैं। साल 1983 में कवि उम्मेदराव खरे द्वारा लिखित एक फारसी किताब के तहत साल 1380 में राजा घाटमदेव ने निर्माण करवाया था। जिसके बाद इस मंदिर को एक बार फिर से साल 1890 में पुन: स्थापित किया गया था। इसे चंदीदीन ने करवाया था। दूर दूर से आए लोगों की मुराद जब यहां पूरी हो जाती है तो मां के दरबार में भंडारा भी करवाते हैं।