अगले 5 साल में अपने सांसद से ये चाहती है बनारस की जनता

नई दिल्ली
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) एक बार फिर से वाराणसी से सांसद चुने गए हैं. पिछले पांच वर्षों में उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र को यूं तो हजारों करोड़ की परियोजनाओं की सौगात दी. कई पर काम चल रहा है तो कुछ काम पूरे भी हुए हैं. बीएचयू हॉस्पिटल को एम्स की तर्ज पर विकसित करने से लेकर काशी विश्वनाथ कॉरिडोर समेत कई परियोजनाओं पर अमल चल रहा है. अब दूसरी पारी में बनारस की जनता की उनसे उम्मीदें बढ़ गईं हैं. बनारस के कुछ प्रमुख लोगों से बातकर जाना कि वहां की स्थानीय जनता अपने सांसद से और क्या आस लगाए बैठी है.

बीएचयू हास्पिटल का नया कैंपस खुले
बीएचयू के सर सुंदर लाल हास्पिटल में अभी 12-12 तल की छह बहुमंजिला इमारतों का निर्माण होना है. मगर बीएचयू में अब जमीन ही नहीं बची है. यहां भवनों का मकड़जाल फैल चुका है. मरीजों और डॉक्टरों दोनों के लिए मुश्किल खड़ी रही है. ऐसे में हॉस्पिटल के लिए नया कैंपस खोलने की मांग उठी है.

बीएचयू में चिकित्साधीक्षक रहने के दौरान प्रो. विजय नाथ मिश्र इसे लेकर एक प्रस्ताव भी अस्पताल प्रशासन की ओर से शासन को भेज चुके हैं. प्रस्ताव में सब्जी अनुसंधान केंद्र की खाली पड़ी दो सौ एकड़ जमीन को हॉस्पिटल के लिए देने की मांग की गई है. प्रो. विजय मिश्रा कहते हैं कि पीएम मोदी ने बनारस और खासतौर से बीएचयू हास्पिटल को बहुत कुछ दिया है. मगर, अपग्रेडेशन और नई बिल्डिंगों के निर्माण के लिए जो पांच हजार करोड़ रुपये मंजूर हुए हैं, उसका तभी सदुपयोग हो पाएगा, जब हॉस्पिटल कैंपस का विस्तार हो. सीमित कैंपस में ही मोटा बजट खर्च करने मे कोई समझदारी नहीं है.

हॉस्पिटल को मिले स्वायत्ता, खुले आयुष्मान सेंटर
बीएचयू हॉस्पिटल आसपास की 27 करोड़ जनता की उम्मीद है. सात प्रदेशों के मरीज यहां आते हैं. नेपाल के भी मरीज बीएचयू में इलाज कराते हैं. पूर्वांचल में गरीबों की तादाद काफी ज्यादा है. ऐसे में यहां आयुष्मान का इंडिपेंडेंट सेंटर खोलने की मांग उठ रही है. बीएचयू  के सर सुंदर लाल हॉस्पिटल के चिकित्सकों की एक और प्रमुख मांग है. वह ये कि हॉस्पिटल को विश्वविद्यालय से अलग कर स्वायत्तता प्रदान की जाए. ताकि यह हास्पिटल अपने उद्देश्यों को पूरा कर सके, नहीं तो अभी तक जो पैसा हॉस्पिटल को अलॉट होता है, उसका समुचित इस्तेमाल नहीं हो पाता.

कैंसर हॉस्पिटल में ओपीडी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर बनारस में महामना कैंसर इंस्टीट्यूट की स्थापना हुई. 19 फरवरी 2019 को पीएम मोदी ने इसका उद्घाटन भी किया. मगर अब तक बुनियादी सुविधाएं न होने से यहां ओपीडी नहीं शुरू हो सकी है. ऐसे में पीएम मोदी के नए कार्यकाल में यहां सुविधाओं के तेजी से विस्तार की आस है.

कारखाने लगाने की मांग
बनारस और पूर्वांचल में कल-कारखानों का अकाल है. यही वजह है कि बड़ी आबादी दिल्ली, मुंबई आदि शहरों को पलायन करती है. पीएम मोदी ने बनारस में जरूर 30 हजार करोड़ से अधिक के प्रोजेक्ट की घोषणा की, मगर कल-कारखानों के मोर्चे पर अभी फोकस नहीं हो पाया है. पिछले पांच साल में एक भी इंडस्ट्री बनारस में नहीं लगी. इतना ही नहीं पिछले 30 साल से बंद चली आ रही हरी फर्टिलाइजर कंपनी पर आज भी ताला लगा हुआ है. जब यह कंपनी बंद हुई थी, तब दस हजार लोग बेरोजगार थे. पीएम मोदी से लोगों को कल-कारखानों की तरफ भी ध्यान देने की आस है.

घाट तो चमके, मगर पानी नहीं
बनारस के स्थानीय पत्रकार हरेंद्र शुक्ला कहते हैं कि यह सच है कि पीएम मोदी के सांसद बनने से काशी में परिवर्तन आया है. गंगा के घाट चमकने लगे हैं. मगर गंगा की सफाई के पैमाने पर वो प्रगति नहीं देखने को मिली जो होनी चाहिए. गंगा में आज भी बनारस के 35 नालों का गंदा पानी जाता है. नगवा नाले में लोहे के नेट में पत्थर रखकर कचड़ा रोकने की काम चलाऊ व्यवस्था है, उससे कचरा तो रुक रहा, मगर गंदा पानी हमेशा की तरफ जाता रहा. लोग स्नान या आचमन के लिए गंगा किनारे जाते हैं. वहां गंदा पानी मिलता है. हां, गंगा का मेनस्ट्रीम का पानी जरूर साफ है. बनारस में पीएम मोदी की पहल पर दो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) की स्थापना हुई. मगर इसमें एक ही चालू हो सका है.

लिंक रोड बदहाल
प्रधानमंत्री मोदी के बनारस से सांसद बनने पर बाहर की सड़कें तो चमकी हैं. मगर अंदरखाने लिंक रोड अब भी बदहाल हैं. मिसाल के तौर पर रामनगर-मुगलसराय, पांडेयपुर-आजमगढ़ रोड जर्जर है. इसके अलावा बनारस में जाम की समस्या का अब तक निदान नहीं निकल सका है. रथयात्रा चौराहे पर एक प्रभावशाली नेता की अवैध बिल्डिंग जाम का बड़ा कारण बताई जाती है.

गंदा पानी, पुरानी सीवर लाइन
बनारस में तंग गलियां हैं. यहां बोरिंग की समस्या है. ऐसे में पाइपलाइन से जलापूर्ति ही सबसे बड़ा साधन है. मगर बनारस में सीवर लाइन के साथ ही पाइपलाइन के जाल से दूषित पानी की आपूर्ति की समस्या है. बनारस में कई दशक पहले सीवर लाइनों का जाल बिछा था, जिसे आज तक बदला नहीं जा सका है.

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