जरूरत के हिसाब से हाथ बदलकर करता हूं गेंदबाजी: अक्षय कर्णेवार

 नई दिल्ली 
दाएं हाथ के बल्लेबाज के लिए बाएं हाथ से बोलिंग और बाएं हाथ के बल्लेबाज के लिए दाएं हाथ से बोलिंग…। जरूरत पड़ने पर धांसू बैटिंग। जी हां, यहां बात विदर्भ के करिश्माई क्रिकेटर अक्षय कर्णेवार की हो रही है। उन्होंने ईरानी ट्रोफी के दौरान शेष भारत के खिलाफ दोनों हाथों से बोलिंग करते हुए जहां सभी को चौंकाया तो शतक लगाकर अपने ऑलराउंडर होने का परिचय भी दिया। दोनों हाथों से बोलिंग और इस शानदार बैटिंग की निपुणता का आखिर राज क्या है? इसके पीछे रोचक कहानी है। उन्होंने दिए इंटरव्यू में खुद इस कहानी से पर्दा उठाया है। आइए जानें बातचीत के प्रमुख अंश… 

– ईरानी ट्रोफी के दौरान दोनों हाथों से गेंदबाजी करके खूब वाहवाही लूटी आपने। आखिर दोनों हाथों से गेंदबाजी का क्या राज है? 
(हंसते हुए) जब मैं 13 साल का था तो दोनों हाथ से बॉल थ्रो करता था। मेरे कोच बालू नावघेरे ने मुझसे कहा कि दोनों हाथों से बॉलिंग ट्राय करो। शुरुआत में बहुत दिक्कत हुई, लेकिन बाद में ये मेरे लिए आसान हो गया। इसके पीछे एक और वजह टीम में लेफ्ट आर्म स्पिनर की कमी भी थी, जो मेरे ऐसा करने से पूरी हो गई। सच कहूं तो मैं दाएं हाथ का गेंदबाज था, लेकिन अब बाएं हाथ का स्पेशलिस्ट बोलर हूं। 

– कोच और कप्तान किसी खास समय, बल्लेबाज पर हाथ बदलने के लिए कहते हैं या आप अपने से ऐसा करते हैं?
मेरी दोनों हाथों से बोलिंग टीम प्लान का हिस्सा होती है। कोच चदूं सर चुनिंदा बल्लेबाजों के लिए हाथ बदलने के लिए कहते हैं। हां, अगर विकेट गिरता है और बाएं हाथ का बल्लेबाज क्रीज पर होता है तो फैज भाई (फजल) मुझे दाएं हाथ से बोलिंग करने के लिए कहते हैं। इसकी दो वजह होती है। पहली यह कि बल्लेबाज बाएं हाथ की स्पिन की उम्मीद करता है, लेकिन दाएं हाथ से गेंदबाजी होने उस पर दबाव बनता है। इसका दूसरी छोर पर साथी गेंदबाज को फायदा मिलता है। दूसरी वजह यह है कि कई बार ऐसा करने पर हम विकेट झटकने में सफल होते रहे हैं। 

– ईरानी ट्रोफी में आपने जोरदार बैटिंग की और फर्स्ट क्लास क्रिकेट करियर का अपना पहला शतक लगाया। इस रणजी सीजन के दौरान बैटिंग की प्रैक्टिस भी कर रहे थे क्या? 
नहीं, नहीं, बिल्कुल भी नहीं। अभ्यास तो सामान्य रूप से गेंदबाजी का ही करता रहा हूं। दरअसल, मैंने करियर की शुरुआत बैट्समैन के रूप में की थी। बाद में कोच के कहने और टीम की सहूलियत के लिए दाएं हाथ की स्पिन पर काम किया। लेकिन सच कहूं तो मुझे नहीं पता था कि दाएं हाथ की स्पिन भी छोड़नी पड़ेगी और बाद में बाएं हाथ की गेंदबाजी (प्रमुख रूप से) लिए जाना जाऊंगा। ईरानी ट्रोफी में टीम को जरूरत थी और मेरे पास बैटिंग का मौका था। शतक (133 गेंद, 102 रन, 13 चौके और 2 छक्के) भी लग गया। कोच सर (चंद्रकांत पंडित) और फैज भाई अक्सर मेरी बैटिंग काबिलियत की तारीफ करते हैं। 

– विदर्भ टीम शानदार प्रदर्शन कर रही है, लेकिन उमेश यादव ही इकलौते चेहरे हैं जो इंटरनैशनल टीम में दिखते हैं। क्या लगता है दो रणजी खिताब के बाद विदर्भ के कुछ और खिलाड़ी टीम इंडिया में दिखेंगे? 
हमने पहला रणजी ट्रोफी खिताब जीता तो लोगों ने उसे तुक्का माना। हमने लगातार दूसरी बार खिताब पर कब्जा जमाया है। वह भी दिग्गज खिलाड़ियों (चेतेश्वर पुजारा और जयदेव उनादकत) के रहते फाइनल में सौराष्ट्र के खिलाफ यह जीत हासिल की। फिर ईरानी ट्रोफी अपने नाम की। शेष भारत की कप्तानी अजिंक्य रहाणे भाई कर रहे थे। टीम में श्रेयस अय्यर, मयंक अग्रवाल, हनुमा विहारी और राहुल चाहर जैसे खिलाड़ी भी थे। ऐसे में जीत दर्ज करना यह साबित करता है कि हमारी जीत सिर्फ तुक्का नहीं थी। हममें दम है। टीम में कई ऐसे खिलाड़ी हैं, जो टीम इंडिया में जल्द खेलते दिख सकते हैं- आदित्य सरवटे, फैज भाई, अक्षय वखरे और मैं (हंसते हुए) भी। 

– उमेश यादव टीम इंडिया के प्रमुख तेज गेंदबाज हैं। उनका टीम में होना कितना प्रभावी होता है? 
उमेश भाई के टीम में वापस आने से जान आ जाती है। उनका टीम में होना ही काफी होता है। जब इंटरनैशनल लेवल का कोई भी खिलाड़ी किसी टीम में होता है तो टीम अलग ही तरीके से खेलती है। खिलाड़ियों का कॉन्फिडेंस लेवल हाई होता है और उसका प्रदर्शन अलग ही नजर आता है। सबसे खास बात यह है कि उमेश भाई के टीम में होने पर विपक्षी बल्लेबाज उनके खिलाफ प्लान करते हैं और इसका फायदा हमारे अन्य गेंदबाजों को मिलता है। वह अपने अनुभव भी हमसे साक्ष करते हैं। 

– वसीम जाफर अनुभवी खिलाड़ी हैं। उनका टीम में एक बल्लेबाज के अलावा क्या रोल होता है, उनकी सलाह टीम के कितनी काम आती है? 
जाफर भाई हममें सबसे अनुभवी हैं और खास हैं। वह लगभग हर मैदान पर खेल चुके हैं। वह हर टीम की मजबूती और कमियों के बारे में बखूबी जानते हैं। टीम प्लान में उनका अहम रोल होता है। वह मैदान पर भी अक्सर फैज भाई और हम सब को मेंटॉर करते रहते हैं। 42 की उम्र में भी उनकी रनों की भूख कम नहीं हुई है। 

– चंद्रकांत पंडित के कोच बनने के बाद से टीम और भी मजबूत हुई है। वह किस तरह टीम को मोटिवेट करते हैं? 
वह महज कोच नहीं हैं, वह खिलाड़ियों के मित्र भी हैं। टीम मीटिंग के दौरान प्लान बनाना हो या मैच के दौरान विकेट नहीं मिल रहे हों या हमारे बल्लेबाज अच्छा नहीं कर रहे हों, वह हमेशा कूल रहते हैं। उनके पास हर समय प्लान-बी होता है, जो हमेशा कामयाब रहता है। कई बार तो मुझे लगता है कि वह कोच नहीं, भविष्यवक्ता हैं। अब ईरानी ट्रोफी मैच को ही ले लीजिए। उन्होंने मैच से ठीक पहले मुझसे कहा कि तुम मैन ऑफ द मैच चुने जाओगे और ट्रोफी हमारी होगी। ऐसा हुआ भी। हमारे पास ऐसे ही कई किस्से हैं। 
 

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